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पहेलियाँ
* अत्थमंत का अर्थ 'डूबता हुआ' 'अस्त होता हुआ' भी होता है। अस्त होता हुआ सूरज चक्रवाक के लिए दु:खद होता है। चूंकि सूर्य अस्त होने पर चक्रवाक-चक्रवाकी का वियोग हो जाता है।
* 'अत्थमंत' यानी अर्थवान्-धनवान्! धनवान् पुरुष ही असती एवं वेश्या को पसंद होता है।'
राजसभा में आनंद की लहर उठी।
महाराजा ने अमरकुमार को कीमती रत्नों से जड़ा हुआ हार भेंट किया। सुरसुंदरी को रत्नजड़ित कंगन दिये।
पंडित सुबुद्धि को भी कीमती वस्त्रालंकारों से सन्मानित किया। श्रेष्ठी धनावह ने खड़े होकर सुरसुंदरी के मस्तक पर हीरे-माणिक से खचित मुकुट रखा। अमरकुमार को रत्नजड़ित खड़ग भेंट किया। पंडितजी को सोने के सिक्कों से भरी हुई थैली अर्पित की।
महाराजा ने गद्गद् स्वर से निवेदन किया। 'आज मेरा मन संतुष्ट हुआ है। अमरकुमार और राजकुमारी का बुद्धिवैभव अद्भुत है। उनकी बुद्धि और उनका ज्ञान उनकी जीवनयात्रा में उन्हें उपयोगी सिद्ध होगा। धर्म-पुरुषार्थ में सहायक सिद्ध होगा। परमार्थ और पर उपकार के कार्यों में उपयोगी होगा | मैं इन दोनों पर प्रसन्न हुआ हूँ। यह सारा यश मिलता है पंडित श्री सुबुद्धि को। उन्होंने पूरी लगन और निष्ठा से छात्रछात्राओं को अत्यंत सुन्दर अध्ययन करवाया है। मैं उन्हें राजसभा में हमेंशा का सम्मान का पद देता हूँ और 'राजरत्न' की पदवी प्रदान करता हूँ।
सभा का विसर्जन हुआ।
सभी सदस्य और नगर-जन, अमरकुमार एवं सुरसुंदरी की प्रशंसा करतेकरते बिखरने लगे।
श्रेष्ठी धनावह अमरकुमार के साथ रथ में बैठकर अपनी हवेली में पहुँचे। महाराजा राज-परिवार के साथ सुरसुंदरी को लेकर रथारूढ़ बनकर राजमहल में पहुंचे।
राजा के मन में अब सुरसुंदरी के भावी जीवन के विचार गतिशील हो रहे थे। निकट भविष्य में ही, सुरसुंदरी के हाथ पीले करने का उन्होंने निर्णय किया ।
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