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आंसुओं में डूबा हुआ परिवार
३२८ 'बहन! हिम्मत मत हारो। शांत बनी रहो...। अभी तो तुम्हें उन दोनों को भीतरी-अंतःकरण की शुभ कामनाएँ देनी है!'
'नहीं... नहीं... मैं नहीं देख सकती उन्हें इन कपड़ों में... उनका केशहीन मस्तक नहीं... मैं नहीं देख पाऊँगी... मेरे प्राण निकल जाएँगे... मुझे तुम दूर ले चलो...।' ___ गुणमंजरी को रथ में बिठाकर चारों रानियाँ उसे हवेली में ले आयी। धीरेधीरे आश्वस्त करके उसे स्वस्थ चित्त किया।
इधर गुरूदेव ने महाव्रतों का आरोपण कर के, उन दोनों नवदीक्षितों को लक्ष्य करके कहा : ___ 'पुण्यशाली साधको, आज तुम भवसागर को तैरने के लिए संयम की नैया मे बैठ गये हो। तुम्हें क्रोध-मान-माया और लोभ पर विजय प्राप्त करनी है। तुम्हें अपने मन-वचन-काया को शुभ-शुद्ध रखना है। इसके लिए पाँच इंद्रियों को वश में रखना है।
केश के लुंचन के साथ विषय-कषाय का लुंचन भी करना है! भाग्यशाली, इर्या-समिति, भाषा-समिति, एषणा-समिति, आदान-भंडनिक्षेपण-समिति, परिष्ठापनिका-समिति का पालन करना | मनोगुप्ति, वचनगुप्ति, और कायगुप्ति का पालन करना। पृथ्वीकाय, अपकाय, तेजकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकाय की रक्षा करना।
दिन-रात के पाँच प्रहर तो तुम्हें श्रुतज्ञान की आराधना-उपासना करनी है। ४२ दोष टालकर भिक्षा लानी है और पाँच दोष त्यागकर आहार करना है। असत्य न बोला जाए, इसकी सतर्कता रखना। तुम्हारी वाणी मधुर-हितकारी और परिमित रखना। किसी भी वस्तु को उसके मालिक से पूछे वगैर लेना मत | मन-वचन-काया से ब्रह्मचर्य का नैष्ठिक पालन करना। नौ प्रकार के परिग्रह का सदंतर त्याग करना।
संयमरूप रथ के दो चक्र हैं- ज्ञान और क्रिया | उस रथ में तुम आरूढ़ हुए हो। देखना... ख्याल करना, रस, ऋद्धि, शाता की लोलुपता सताये नहीं। देशकथा, राजकथा, भोजनकथा और स्त्रीकथा का त्याग करना। वैसी आत्मस्थिति को प्राप्त करना कि शत्रुमित्र-समवृत्ति हो जाओ! इसके लिए क्षमा, नम्रता, सरलता, निर्लोभता, इत्यादि इस प्रकार के यतिधर्म का पालन करना । दस प्रकार के समाचारों का यथोचित पालन करना।
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