________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नदिया सा संसार बहे
२९९ ___ महाराजा रिपुमर्दन तो सुरसुंदरी के सुख-दुःख का इतिहास सुनकर चकित हो गये। श्री नवकार मंत्र के अचिंत्य प्रभाव को जानकर उनके हृदय परमेष्ठी भगवंतो के प्रति दृढ प्रीति-श्रद्धा व्याप्त हुआ। रत्नजटी के प्रति १उनके दिल में अपार स्नेह और सद्भाव जगा | गुणमंजरी के साथ शादी की बात सुनकर तो उन्हें हँसी आ गई। कर्मों के विचित्र उदयों का तत्त्वज्ञान पाकर वे संसार के प्रति भी वैरागी हो उठे। उनके दिल में अमरकुमार के प्रति न तो अभाव हुआ और न ही नाराजगी रही।
'पिताजी, कृपा करके ये सारी बातें मेरी माँ को मत कहना... अन्यथा वह बड़ी दुःखी-दुःखी हो उठेगी। उसका कोमल दिल इन बातों को, अपनी बेटी की यातनाओं को झेल नहीं पाएगा! उसे दामाद के प्रति शायद...।' __'तु निश्चिंत रहना बेटी, यह बातें मेरे पेट में ही रहेगी! संसार में कर्मवश जीव को ऐसे सुख-दुःख उठाने ही पड़ते हैं। अपने बांधे हुए कर्म हम को भुगतने होते हैं! यह बात मैं कहाँ नहीं जानता हूँ?'
सुरसुंदरी गुणमंजरी का बराबर ध्यान रख रही है। मालती को उसने गुणमंजरी की सार-सम्हाल का कार्य सौंप दिया है।
सुरसुंदरी सबेरे-सबेरे अमरकुमार और गुणमंजरी के साथ ही बैठकर श्री नवकार मंत्र का जाप करती है, पंचपरमेष्ठी भगवंतों का स्मरण करती हैं, गीत-गान रती है। तीनों साथ-साथ जिन-पूजा करने जाते हैं। अमरकुमार ने चंपानगरी के बीचोबीच ही भव्य जिनमंदिर का निर्माण करवाने का कार्य ज़ोरशोर से शुरू करवा दिया। सुरसुंदरी की मनोकामना के अनुसार, चंपा राज्य में गाँव-गाँव में और नगर-नगर में जिनमंदिरों के निर्माण की योजना बना दी गयी। सवा लाख जिन प्रतिमाओं को निर्मित करने के लिए उसने राज्य के श्रेष्ठ शिल्पवास्तु विशारदों को चंपा में निमंत्रित किये हैं। मृत्युंजय के माध्यम से सारे राज्य में किस को क्या दु:ख है... किस को क्या ज़रूरत है... इसकी जानकारी प्राप्त करके प्रजाजनों के दुःख दूर करने का कार्य भी प्रारंभ कर दिया है।
सुरसुंदरी और गुणमंजरी की एक-एक इच्छा को पूर्ण करता हुआ अमरकुमार गाँव नगर में और समूचे राज्य में लोकप्रिय हो गया। दान-शील और नम्रता के गुणों में यह ताकत छुपी हुई है।
For Private And Personal Use Only