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नदिया सा संसार बहे तमाम प्रजाजनों का भोजन-समारोह घोषित किया गया।
आज सपरिवार धनावह श्रेष्ठी का महाराजा के वहाँ राजमहल में भोजन का निमंत्रण था। नित्यकर्म से निपटकर मध्याह्न के समय सभी राजमहल में पहुँचे । अद्भुत स्वजन-मिलन हुआ। अमरकुमार ने मृत्युंजय को अपने साथ ही रखा था। मालती सुरसुंदरी और गुणमंजरी की छाया बनकर चल रही थी। मालती के पति को सुरसुंदरी ने महल में ही एक कमरा दिलवा दिया था। ___ भोजन इत्यादि से निवृत्त होकर अमरकुमार महाराजा रिपुमर्दन और धनावह श्रेष्ठी के पास बैठा। सुरसुंदरी और गुणमंजरी रानी रतिसुंदरी एवं धनवती के पास जाकर बैठी।
सुरसुंदरी ने गुणमंजरी का सभी से परिचय कराया। बेनातट नगर की बातें कही। गुणमंजरी के माता-पिता के गुणों की भी जी भरकर प्रशंसा की।
अमरकुमार ने अपनी विदेशयात्रा की बातें कही बेनातट नगर में महाराजा गुणपाल के आग्रह से एवं सुरसुंदरी के दबाव से गुणमंजरी के साथ की हुई शादी की बात कही। राजा-श्रेष्ठी दोनों प्रसन्न हो उठे।
'अमर, तूने महाराजा, गुणपाल को चंपानगरी पधारने के लिए निमंत्रण दिया या नहीं?'
'ओह्... यह बात तो मेरे दिमाग से निकल ही गयी पिताजी!' 'तब तो शीघ्र ही आमंत्रण भेजना चाहिए।' महाराजा रिपुमर्दन ने धनावह सेठ के प्रस्ताव का समर्थन किया।
'अच्छा है, बेनातट से आये हुए सैनिकों को वापस भेजना ही है। उनके साथ निमंत्रण भेज दूंगा।' ___ 'पर कुमार, उन सुभटों को आठ दिन तक तो चंपानगरी का आतिथ्य स्वीकार करना होगा।
ज़रुर... ज़रुर उन्हें यहाँ रहना अच्छा भी लगेगा।' 'अब तुम भी आराम करो, कुमार, काफी ज्यादा थके हुए होगे... यात्रा से, लंबी समुद्री यात्रा से!'
सभी खड़े हुए। अपने-अपने स्थान पर चले गये।
दूसरे दिन जब अमरकुमार महाराजा से मिलने के लिये राजमहल में गया तब महाराजा ने अमरकुमार से कहा :
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