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राज्य भी मिला, राजकुमारी भी ! हे भगवान आप कृपा करें !
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महाराजा की तहेदिल की प्रार्थना के साथ-साथ वातावरण में यकायक परिवर्तन होने लगा। मयूरों का केकारव मुखरित हो उठा । आम्रवृक्ष की डाली पर बैठी कोयल कुहक - कुहक शोर मचाने लगी। पेड़ों की डालियाँ झुमती हुई नाचने लगी। मानो सारी प्रकृति पुलकित होकर नृत्य करने लगी । कुदरत का कारोबार खुशियों का पैगाम ले आया हो, वैसा समा बँधने लगा।
इतने में एक ऊँचे पेड़ की डाली पर बैठे किसी राजपुरूष की आवाज खुशखबरी सुनाती हुई सबके कानों तक पहुँची....
‘विमलयश आ रहे हैं! बड़ी तेजी से आ रहे हैं! साथ में एक औरत और एक पुरूष भी है... शायद राजकुमारी हो !'
सभी की निगाहें ऊपर उठी । जन-समुदाय में से किसी ने पूछा : 'किस दिशा की ओर से आ रहे हैं?'
'पश्चिम दिशा की ओर से !' वृक्ष के ऊपर बैठे हुए व्यक्ति ने जवाब दिया । सैकड़ों स्त्री-पुरूष आननफानन पश्चिम दिशा की ओर दौड़ पड़े !
महाराजा पुनः नवकार मंत्र के जाप ध्यान में लीन हो गये ।
पश्चिम दिशा में दौड रहे स्त्री-पुरूषों को बीच रास्ते ही विमलयश का मिलन हो गया, और लोगों ने गुणमंजरी को सुरक्षित देखकर हर्षध्वनि की । आनंदविभोर होकर लोगों ने विमलयश का जयजयकार किया। जयध्वनि के शब्द महाराजा के श्रुतिपट पर टकराये तो उन्होंने आँखें खोली । पश्चिम दिशा की ओर निगाहें उठाकर देखा । विमलयश को तीव्र वेग से अपनी तरफ आते देखा । महाराजा की आँखे खुशी के आँसुओं से छलक उठी । महारानी का चेहरा भी प्रसन्नता के फुलों से खिल उठा! दोनों खड़े हो गये। पश्चिम दिशा की तरफ दोनों ने कदम बढ़ाये ।
विमलयश ने महाराजा को प्रणाम किया। चरणों में झुकते हुए विमलयश को राजा ने अपने सीने से लगाया...।
महारानी ने गुणमंजरी को अपने बाहुपाश में जकड़ लिया। माँ-बेटी दोनों की आँखों की किनारे खुशी के आँसुओं के तोरण से बँध गए।
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प्रजाजन तो नाचने लगे! नगर में से दो रथ आ गये थे। एक रथ में महाराजा विमलयश को साथ लेकर बैठे। दूसरे रथ में रानी गुणमंजरी के साथ बैठी। विमलयश ने तस्कर को अपने रथ के साथ चलने की सूचना दे दी थी।