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राज्य भी मिला, राजकुमारी भी! नगर में आनंद का उदधि उफन रहा था!
नगरवधुओं ने विमलयश पर फूलों की वृष्टि की। राजसभा का आयोजन हुआ।
महाराजा ने विमलयश को अपने निकट ही बिठाया। जवनिका के भीतर महारानी के समीप गुणमंजरी बैठ गयी।
महाराजा ने पूरी सभा पर सरसरी निगाह डाली और फिर सभाजनों को संबोधित करते हुए कहा : 'मेरे प्रिय प्रजाजन!
आज हमारे आनंद की सीमा नहीं है! खुशी की कोई हद नहीं है! इन सबका श्रेय है अपने सबके लाड़ले परदशी राजकुमार विमलयश को! राजकुमारी को भयंकर चोर के शिकंजे में से मुक्त कर लाया है। हम विमलयश के खुद के मुँह से सारी घटना का बयान सुनें कि उसने राजकुमारी को कैसे मुक्त किया और चोर को पकड़ लिया।' ___ महाराजा ने विमलयश की ओर देखा । विमलयश ने खड़े होकर महाराजा को प्रणाम किया। सभाजनों को प्रणाम किया... और कहा : ___ 'मेरे पितातुल्य महाराजा और प्यारे प्रजाजनों, जो कुछ भी अच्छा हुआ है वह सारा प्रभाव श्री नवकार महामंत्र की अचिंत्य कृपा का है। मैं केवल निमित्त बना हूँ| राजकुमारी के प्रबल पुण्योदय से ही मैं समय पर उस तक पहुँच सका। पिछले कुछ दिनों से नगर में हायतोबा मचा देनेवाला चोर कोई सामान्य अपराधी नहीं है... उसके पास मंत्रशक्तियाँ हैं। विद्याशक्ति है। उसी शक्ति के बल पर ही उसने आज तक सफलता प्राप्त की थी। परंतु विद्याशक्तियों का दुरूपयोग आखिर कहाँ तक कुदरत सहन कर सकती थी? मेरे हाथों वह पराजित हुआ। मैंने उसे जिंदा पकड़ लिया... उसने मेरी शरण ले ली...!!'
अचानक जवनिका में से गुणमंजरी बाहर आयी और महाराजा गुणपाल के पास जाकर उसने कहा :
'पिताजी, तस्कर के पास मंत्रशक्तियाँ होगी, पर हमारे परदेसी कुमार के पास तो इससे भी बढ़कर विद्याशक्तियाँ हैं | वे अदृश्य बनकर तस्कर के पीछे ही गुफा में चले आये थे। और एक ही मुष्टि का प्रहार करके उसे ज़मीन पर ढेर कर दिया। एक ही लात से चोर को खून की उलटी करवा दी। दिन में चाँद-तारे दिखा दिये! कुमार की ताकत गज़ब की है। पिताजी, मेरे प्राणों की
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