________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चोर ने मचाया शोर
२३२
उसने कहा : ‘मैं परदेशी सौदागर हूँ... । इस हवेली के मालिक मुझे यहाँ पर मेहमान बनाकर ले आये थे ।'
'हवेली के मालिक ? होश में तो हैं न आप! हवेली की मालिक मैं हूँ कामपताका! वह तो मेरे पास आकर मेरे गहने भी ले गया है... मैया री... मैं तो लुट गयी...।'
'ओह बाप रे... मेरे पाँच श्रेष्ठ घोड़े भी गये... ! ' सौदागर छाती पीटने लगा।
दोनों एक दूसरे का चेहरा देखते रहे...।
विमलयश का हँसी के मारे बुरा हाल था । जबरदस्ती अपने आप पर काबू पाते हुए उसने कहा : 'मालती, नगर में इतना हंगामा मचा हुआ है और मुझे तो कुछ मालूम भी नहीं है।'
कहाँ से मालूम होगा? तुमने तो सात दिन से बाहर ही कदम कहाँ रखा है जो। तुम तो बस दिन-रात वीणा के पीछे पागल हुए हो... उधर उस राजकुमारी को भी पागल बना डाला है।'
'चुप मर... कोई पागल हो तो मैं क्या करूँ? मैं उसे मजबूरन पागल बना रहा हूँ क्या? तू अपने चोर की बात कर ... हाँ, तो ... बाद में क्या हुआ ? चोर पकड़ा गया या नहीं?'
'चोर पकड़ा जाए? अरे... उसे पकड़ने के लिए बगीचे के चौकीदार भीमाबहादूर ने बीड़ा उठाया । भीमा तो सचमुच भीम ही है। बड़ा पहलवान है। मैं उसे जानती हूँ। चोर को इस बात का पता लग गया। उसने जोगी का रूप रचाया। सिर पर बड़ी भारी जटाएँ... और चेहरे पर लंबी सफेद दाढ़ी... गेरुए कपड़े पहने। बगीचे में जा पहुँचा... भीमा वैसे भी बेचारा भगत आदमी है। जोगी को देखा तो दौड़ता हुआ गया... स्वागत किया । बाबाजी से प्रार्थना की : 'बाबा मेरे घर पर भोजन करने के लिए पधारेंगे?' बाबा ने आँखे बंद की .... ध्यान लगाकर कहा : 'भीमा... तेरे घर पर भोजन करने नहीं आ सकता मैं!'
'क्यों बाबाजी ?'
'तेरी माँ जिंदा डायन है ... वह रात को सोये हुए आदमी का खून चूस लेती है... तुझे भरोसा नहीं होता तो आज रात को पास में डंडा लेकर सोने का ढोंग करते हुए खटिया पर लेटे रहना ।' भीमा कुछ दु:खी... कुछ शंकासंदेह भरे दिमाग से चला गया । भीमा की माँ आयी बाबाजी को आमंत्रण देने
For Private And Personal Use Only