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चोर ने मचाया शोर
२३१ कामपताका के घर पर पहुँचा । वेश्या तो पैसेवाले इस नये मुर्गे को देखकर खुश हो उठी। उसने बड़े प्रेम से उसका आदर किया । उसे बिठाया । ताम्बूल दिया। चोर ने कहा : कामपताका, नगर के बाहर एक परदेशी सौदागर आया है... धनवान है... जवान है... यदि तू कहे तो मैं उसे यहाँ पर ले आऊँ! तू मालामाल हो जाएगी!'
वेश्या तो खुश-खुश हो उठी! चोर गया सौदागर के पास | सौदागर से कहा :
आप परदेशी हैं... बड़े व्यापारी हैं... और इस तरह नगर के बाहर ठहरे हैं, वह अच्छा नहीं लगता! मैं इसी नगर का व्यापारी हूँ...। मेरी हवेली पर पधारें...।' वह सौदागर अपने परिवार को लेकर चोर के साथ वेश्या की हवेली पर आया। सबकी अच्छी खातिरदारी की। फिर चोर ने सौदागर को आराम करने को कहकर स्वयं सौदागर का भेस बदलकर पहुँचा उस वेश्या के पास | उसने भेस और आवाज़ ऐसी बदली कि वेश्या भाँप तक न सकी। वेश्या ने उसे नया आगंतुक सौदागर समझा। उसे आदर से बिठाया । चोर ने इधर-उधर की बातें करते हुए बड़ी मधुरता से कहा :
'कामपताका, मुझे राजसभा में जाकर व्यापार हेतु राजा से मिलना है...। मेरे सारे कीमती आभूषण पेटी में बंद है... हालाँकि पेटी हैं तेरे घर पर... पर यदि तेरे आभूषण बाहर हों, तो जरा पहनने को दे दे...| अभी गया अभी आया। बाद में फिर मौज मनायेंगे। ढेर सारे रूपये लेकर आया हूँ, बेनातट में मौज मनाने को!'
वेश्या झाँसे में आ गयी। उसने अपने बेशक़ीमत गहने निकाल कर दे दिये उसे | वे गहने पहनकर चोर पहुँचा असली सौदागर के पास | जाकर बोला : 'मैं महाराज के पास जा रहा हूँ... आपके पाँच सुंदर घोड़े ले जाना चाहता हूँ| महाराजा को बताकर भारी मूल्य तय कर लूँगा।' सौदागर ने खुश होते हुए ज्यादा क़ीमत के लालच में आकर पाँच अश्व दे दिये! चोर घोड़े व आभूषण लेकर गया, सो गया...! वापस आया ही नहीं! इधर रात हुई तो भी सेठ वापस नहीं आये... वह सौदागर वेश्या के पास आया और पूछने लगा :
'सेठ क्यों नहीं आये अभी तक?'
'कौन सेठ? किसकी बात कर रहे हो? आप कौन हैं, जनाब?' वेश्या ने चमकते हुए पूछा।
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