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नया जीवन साथी मिला
२२४ जैसी राजकुमारी हूँ...? मेरे पुरूष-रूप के साथ वह प्यार का रिश्ता बाँध बैठी है? स्त्री का दिल इसी तरह खिंच जाता है... परदेसी के साथ प्रीत के गीत रचा बैठती है... मैं भी क्या करूँ?' मैं अभी मेरा भेद खोलूँ भी तो कैसे? मुझे तो 'विमलयश' के रूप में ही यहाँ रहना होगा। अमरकुमार के आने के बाद ठीक है मेरा भेद खुल जाए तो भी चिंता नहीं...। तब तक तो राज को राज ही रखना पड़ेगा! राजकुमारी को खिंचने , प्रेम के प्रवाह में? बहने , प्रीत की पागल नदी में...! हाँ... मैं उसे अपने देह से दूर रसूंगी।'
विमलयश के साथ जैसे अद्भुत कलाएँ थी, वैसी उसकी बुद्धि भी विलक्षण एवं विचक्षण थी।
ज्ञानरूचि तो उसके साथ जन्म से जुड़ी हुई थी। दया-करूणा एवं परोपकार-परायणता उसे दूध के साथ मिल हुए गुण थे। __ उसके पास चुंगी का धन काफी मात्रा में इकठ्ठा होने लगा... उसने बेनातट नगर में गरीब, दीन दुःखी और असहाय लोगों की सार-सम्हाल लेना प्रारंभ किया । उदारता से सबको सहायता करने लगा। इस कार्य में उसे मालती की काफी मदद मिल जाती थी... चूँकि वह पूरे नगर से परिचित थी। तीन बरस में तो पूरे बेनातट नगर में कोई भी व्यक्ति गरीब नहीं रहा...। विमलयश ने जी भरकर लोगों को धन दिया।
दूसरी तरफ विमलयश ने पाया कि राज्य के अधिकारी वर्ग को पूरी तनख्वाह नहीं मिलती थी। विमलयश ने सब के वेतन बढ़वा दिये | खुले हाथों सबको दान देने लगा। सबके साथ प्यार भरा व्यवहार तो उसका स्वभाव हीं था।
सारे नगर में पूरे राज्य में विमलयश का उज्ज्वल यश फैलने लगा। सबकी जबान पर विमलयश के गुण गाये जाने लगे। राजसभा में विमलयश की प्रशंसा होती थी। राजकुमारी अपने हृदयवल्लभ की प्रशंसा सुनकर झूमती है... खुश हो उठती है। उसका प्रेम दिन-ब-दिन गहरा और गाढ़ हो रहा था।
चुंगी से मिलनेवाला सारा धन वह गरीबों को बाँट देता है। राजपुरूषों को भी उदारता से भेंट-सौगातें देते रहता है।
विमलयश के दिल को जीतने के लिए गुणमंजरी आतुर थी। उसके चरणों में अपना प्रेम निछावर करने के लिए वह तत्पर थी। ऐसा करने में तो अपनी कुरबानी देने को भी तैयार थी।
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