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नया जीवन साथी मिला
२२५ समय-समय पर गुणमंजरी विमलयश से मिलती रहती और तत्त्वचर्चा भी करती। एक बार मज़ाकिया लहजे में विमलयश ने गुणमंजरी को पूछ लिया : 'क्या इस तरह मुझसे मिलने में तुझे डर नहीं लगता? मेरे साथ इस तरह बातें करते हुए महाराजा ने देख लिया तो?' । __ तब गुणमंजरी ने बेझिझक जवाब दिया था।
'यदि मेरे प्रियतम का प्रेम सच्चा होगा, तो फिर मुझे डर किस बात का? बड़ी से बड़ी कठिनाई भी लाँघ जाऊँगी यदि तुम्हारा मुझे साथ मिले तो!' ___'पर कभी प्रेम के सागर में कमी आ गयी तो?' कुमार... प्रेम के सागर में कभी कमी आती ही नहीं... प्रेम तो सदा-सर्वदा प्रवद्र्धमान होता है... प्रेम आकाश से भी ऊँचा होता है... उसे तो वज्र से भी नहीं काटा जा सकता।'
विमलयश गुणमंजरी का जवाब सुनकर प्रसन्न हो उठता है। प्रेम और वासना के बीच का अंतर गुणमंजरी भली-भाँति जानती है, यह बात जानकर विमलयश आश्वस्त था।
नवसृष्टि के, नवजीवन के, शांत-सुंदर और सुमधुर वातावरण में विमलयश अपने पूर्व जीवन के कटु प्रसंगों को धीरे-धीरे विस्मृति के भंवर में डालता रहता है। फिर भी अमरकुमार की स्मृति अविकल बनी रहती है...। अमरकुमार की प्रतीक्षा की ज्योत सदा जलती रहती है। बेनातट नगर में एक के बाद एक बरस गुज़र रहे हैं...। कभी वह नगर से ऊब जाता है, तो दूर-दूर ग्राम्य प्रदेशों में चला जाता है...। वहाँ भी वह अपनी स्नेह सौरभ को चारों ओर फैला देता है... | ग्रामीण प्रजा की गरीबी दिल खोलकर दान देकर दूर करता है। सुरम्य हरियाली... हरे-भरे खेत... कलकल बहते हुए झरने... वनफुलों की मदिर-मदिर गंध... प्रकृति के इन सुहावने दृश्यों को वह जी-भर पीता है। प्रकृति की गोद में उसका अंग-अंग पुलकित हो उठता है। कभी उस अन्मुक्त, स्वच्छ सुंदर वातावरण के आगे राजमहल का अवरूद्ध जीवन उसे तुच्छ प्रतीत होता है।
इस तरह विमलयश की कीर्ति-कौमुदि बेनातट के समग्र राज्य में फैली ही, साथ ही साथ आसपास के राज्यों में भी उसकी प्रशंसा होने लगी। उसका यश फैलने लगा। सावन के भरे-भरे बादलों की भाँति विमलयश की उदारता बरसती रही। दया-करूणा का प्रवाह बहता रहा।
साथ ही साथ राजकुमारी गुणमंजरी का स्नेह भी बढता ही जा रहा था।
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