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नया जीवन साथी मिला
२२३ प्रकाश में विमलयश ने देखा तो राजकुमारी के मासूम चेहरे पर प्रीत के लक्षण अंकित हो रहे थे। __ 'तब तो मेरी वीणा ने तुम्हारी नींद चुरा ली... नहीं? राजकुमारी, माफ कर देना...' ___'नहीं... ऐसे माफी कैसे मिलेगी? वीणा ने केवल नींद ही चुरायी होती तो ठीक था... पर...'
राजकुमारी आगे बोलते-बोलते ठिठक गयी...। टकटकी बांधे विमलयश को निहारने लगी! फिर एक गहरी साँस छोड़ते हुए उसने अपनी निगाहे ज़मीन पर बिछा दी...!
'यह मेरी खुशनसीबी है राजकुमारी कि मेरी वीणा के सुरों ने किसी के दिल पर दस्तक दे दी...। किसी ने उन भटकते सुरों को अपने भीतर सहेज लिया! परंतु...'
‘परंतु क्या परदेशी?' 'इस समय यहाँ पर आपका इस तरह आना...' 'मैं भी जानती हूँ... उचित नहीं है, पर क्या करूँ? दिल की लगी कभी गैरवाज़िब भी करने को मजबूर बना देती है! कौन इसे समझाए! फिर भी... जाती हूँ... खैर! पर मेरे परदेशी... अब कभी मुझे 'कोई' मत मानना | मैंने केवल वीणा के स्वरों को ही नहीं पकड़ा है... अपितु वीणावादक को भी अपने दिल की दुनिया में कैद कर लिया है!'
राजकुमारी हिरनी सी दौड़ती हुई अपने महल में चली गयी। विमलयश ने ऊपर आकर वापस वीणा को झंकृत की। सुरों का काफिला लय और झंकार का समा बाँधे बहने लगा...| रात का तीसरा प्रहर ढलने लगा था...। शाम के जले दिये धीरे-धीरे मद्धिम हुए जा रहे थे...। वीणा के सुर भी सिमटते-सिमटते शांत हो गये | सुरों की अनुगुंज अब भी आसपास को आंदोलित बना रही थी।
विमलयश ने वीणा को यथास्थान रख दिया और ज़मीन पर ही वह लेट गया। अक्सर वह इतनी रात गये ही सोता था...। उसका मन अव्यक्त व्यथा से मचल रहा था...। कुछ कसक-सी उठ रही थी भीतर में! मन ही मन विचारों की आँधी छाने लगी।
'बेचारी... भोली राजकुमारी! वह कहाँ यह भेद जानती है कि मैं भी उसके
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