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नया जीवन साथी मिला
२२२ राजकुमारी गुणमंजरी की हृदयनौका को, विमलयश की वीणा की लगन, दर्द के दरिये में खींच ले गयी थी।
फिर तो यह रोज का कार्यक्रम हो गया। राजा भी जी भरकर विमलयश का वीणावादन सुनता...। कभी-कभार राज्यसभा में भी विमलयश की वीणा के सुर झंकृत हो उठते हैं। लोग व सभाजन 'वाह-वाह' पुकारते थकते नहीं हैं...। राजा के साथ विमलयश की दोस्ती जम गयी। गुणमंजरी विमलयश के वीणावादन पर मोहित हो गयी थी...| विमलयश को इसकी भनक लग गयी थी...| उसकी अनुभवी आंखों ने गुणमंजरी के दिल में हिलोरें लेती भावनाओं को भाँप लिया था।
एक रात की बात है...। विमलयश की वीणा में से 'शिवरंजनी' के दर्द भरे सुर बहने लगे...।
अस्तित्व को बिसरा दे वैसे मोहक सुरों में सब कुछ डूब गया...। सर्द बना हुआ दर्द स्वर के अनुताप में पिघलने लगा।
राजकुमारी जग रही थी। वीणा के सुरों ने उसको बेचैन बना दिया...। अपने कक्ष का छोटा-सा नक्काशी भरा झरोखा खोलकर वह देर तक सुनती ही रही उन स्वरों को, जो हवा के पंखों पर सवार हुए उसकी तरफ चले आ रहे थे। ___ उसका बेचैन मन-पंख फैलाये उड़कर कभी का विमलयश के महल में जा पहुँचा था! आकाश में चांदनी चारों दिशाओं में खिली थी... धरती ने रूपहली चादर ओढ़ ली थी।
विमलयश की वीणा आज जैसे पागल हो गयी थी। गगन के गवाक्ष में चांद को मिलने के लिए बेतहाशा होकर स्वर का पंखी पंख फैलाये ऊपर ही ऊपर चढ़ा जा रहा था।
विमलयश की नजर अचानक अपने झरोखे के नीचे गयी। उसे लगा कोई मानव आकृति खड़ी है...| 'अरे... अभी इस वक्त आधी रात गये कौन यहाँ खड़ा है...?' विमलयश ने गौर से देखा तो... 'ओह... यह तो राजकुमारी लगती है...।' वीणा रखकर विमलयश नीचे उतरा...। महल का दरवाजा खोलकर वह बाहर निकला।
'तुमने क्यों वीणा बजाना बंद कर दिया? तुम्हारी वीणा के सुर हीं तो मुझे यहाँ तक खींच लाये हैं... जबरदस्ती खींच लाये हैं...।' श्वेतशुभ्र चाँदनी के
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