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नयी कला-नया अध्ययन
'अब मेरी लाड़ली को कौन-सा अध्ययन करवाने की सोची है?" रानी रतिसुंदरी ने पूछा।
'मैं इसलिए तो, तुम्हारे साथ परामर्श करने के लिए ही यहाँ आया हूँ। 'मुझे लगता है कि सुंदरी को अब धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान देना चाहिए। इस ज्ञान के बगैर तो सारी कलाएँ अधूरी हैं।' __ 'तुम्हारी बात सही है। सुंदरी यदि धर्म को समझे तो वह उसके जीवन में काफी हद तक उपयोगी हो सकता है | धर्म के मौलिक तत्त्व ही मनुष्य के मन को प्रसन्न रख सकते हैं। आध्यात्मिक विचार धारा से ही इन्सान आत्मतृप्तिभीतरी संतोष को पा सकता है।'
'बेटी...' रानी ने सुंदरी की ओर मुड़ते हुए कहा - 'हम जो सोच रहे थे उसमें तेरे पिताजी की अनुमति सहज रूप से मिल गयी।' रानी रतिसुंदरी खुश होकर बोली। उसने राजा से कहा : आप यहाँ पधारे, इससे पहले हम माँ-बेटी यही बातें कर रही थी। सुंदरी की इच्छा है धार्मिक ज्ञान प्राप्त करने की, पर यह ज्ञान सुंदरी पाएगी किससे? कौन सुंदरी को ये बातें सिखाएगा?'
'धर्म का ज्ञान तो धर्ममय जीवन जीनेवाले, साक्षात् जो धर्ममूर्ति हो, वही दे सकते हैं और उन्ही से लेना चाहिए। जिसके जीवन में धर्म न हो... और धर्मतत्त्व का हृदयस्पर्शी बोध न हो, वह फिर चाहे शास्त्रों का पंडित क्यों न हो, उससे शास्त्रज्ञान मिल सकता है, पर जीवंत धर्मतत्त्व का बोध नहीं मिल पाता है! इसलिए, सुंदरी को यदि कोई धर्ममूर्ति साध्वीजी मिल जाए तो अच्छा
रहे!'
'साध्वीजी के पास? पर!' _ 'चिन्ता मत करो देवी... तुम्हारी बेटी यदि वैरागी बनकर साध्वी भी हो जाए... तो अपना परम सौभाग्य मानना...! अपनी पुत्री यदि मोक्षमार्ग पर चल देगी, तो शायद कभी हमको भी इस दावानल से झुलसते संसार में से निकाल सकेगी।' राजा रिपुमर्दन का अंतःकरण बोल रहा था। 'देवी, निःस्वार्थ... निःस्पृही साध्वीजी जो धर्मबोध देंगी वह सुंदरी की आत्मा को स्पर्श करेगा ही। सुंदरी को ऊँचे-स्तर के संस्कार मिलेंगे। उच्च आत्माओं के आशीर्वाद प्राप्त होंगे। किसी दिव्यतत्त्व की प्राप्ति हो जाएगी।' ___ 'आप जो कहते हैं, वह बिल्कुल यथार्थ है... मुझे बहुत अच्छी लगी आपकी बातें! अपनी पुत्री का पारलौकिक हित हमें सोचना ही चाहिए। केवल
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