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प्रीत न करियो कोय
१९० पीड़ा से थरथराने लगा। पासे गलत गिरने लगे... रानियों ने सुरसुंदरी को देखा तो वे चौंक उठीं :
'दीदी... तुम्हारे चेहरे पर इतना दर्द क्यों जम रहा है?' 'कुछ समझ में नहीं आता है... मुझे बेचैनी है... कुछ अच्छा नहीं लग रहा है!' 'तो हम खेल बंद कर दें... अच्छा लगे वह करें। दीदी...!!!' रानियों ने खेल बंद किया। चारों रानियाँ चिंता से व्याकुल हो उठी! 'बहन, बगीचे में घूमने जाना है?' 'दीदी, कुछ पिओगी?' 'दीदी, सिर दबा दूँ...?' 'सुरसुंदरी की बेचैनी ने चारों रानियों को उद्विग्न बना डाला... सुरसुंदरी ने चारों के ओर देखा...
'कहो न दीदी... क्या बात है?' रानियों की आँखें भर आयी। 'मुझे अपने भाई के पास जाना हैं... जल्दी ले चलो मुझे वहाँ, वे मुझे याद कर रहे हैं...'
सुरसुंदरी खड़ी हो गई... चारों रानियों के साथ त्वरा से नीचे उतरी... रत्नजटी के शयनकक्ष का दरवाजा बंद था... द्वार के पास आकर सुरसुंदरी खड़ी रह गयी... वह अपने दोनों हाथ दरवाजे पर रखती हुई चीख पड़ी... 'भाई... दरवाज़ा खोलो...' उसकी आँखों में सावन की झड़ी लग गयी... वह दरवाजे के पास ही ढेर हो गयी। सारी रानियाँ फफक उठ... सुरसुंदरी को घेरकर बैठ गयी।
रत्नजटी ने कुछ स्वस्थ होकर दरवाज़ा खोला। सुरसुंदरी तुरंत खड़ी हो गयी... उसने रत्नजटी के कंधों पर अपने हाथ रखते हुए आँखों में आँसू भरकर उसकी आँखों में झाँका | वह गुमसुम-सी खड़ी रही गयी। 'क्या तुम मुझे याद कर रहे थे, भैया?'
'हॉ... मेरी बहन, पल-पल तुझे याद कर रहा हूँ...' रत्नजटी की बनावटी स्वस्थता सुरसुंदरी के बहते आँसूओं में बह गयी... उसकी लाल-लाल सूजी हुई आँखों में से आँसू टपकने लगे। रानियाँ भी दुःखी-दुःखी हो उठी... नहीं, भैया नहीं... तुम्हें मेरी कसम है... यदि आँसू बहाये तो।'
और अब क्या बचेगा जिंदगी में, बहन?' 'नहीं, तुम रोओ मत ।' 'बहन!!!' 'भाई!!!'
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