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छोटी सी बात कर... तू मुझें डाँट-फटकार सुना... अब मैं कभी भी ऐसी गलती फिर से नहीं करूँगी ...अमर...'
अमर ने अपने वस्त्र से सुरसुंदरी की आँखों के आँसू पोंछे । सुरसुंदरी का चेहरा चमक उठा। उसकी आँखो में प्रसन्नता छा गयी। उसने अमर का हाथ पकड़ लिया।
'अमर, तू मुझे छोड़ तो नहीं देगा न? मेरी ओर देखेगा न? मुझसे बोलेगा न? तू एक बार हँसकर मुझे जबाब दे...'
'सुर... हम कल की बातें भूल जाएँ। 'हाँ... अमर... भूल जाएँ! अपनी दोस्ती तो सदा की है। है न अमर?'
समय हो चुका था। दोनों का विषाद घुल गया था । पर क्या मनुष्य किसी कटु घटना को भुला सकता है?
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