________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
छोटी सी बात भी अपने स्थान पर मौन बैठी हुई थी। उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह अब अमरकुमार को किस तरह बुलाए? शायद वह उसे बुलाए और अमर न बोले तो? शायद वह गुस्सा कर बैठे तो? कहीं स्वयं अपना अपमान सहन न कर पाए तो? अपमान सहन करने की मानसिक तैयारी के साथ आई हुई सुरसुंदरी का विश्वास... अपने आप पर का भरोसा डांवाडोल गया।
अमर अन्य छात्रों को स्वाध्याय कराता रहा था। हालांकि स्वाध्याय करवाने में न तो अमर को मज़ा आ रहा था... नाही और छात्रों को मज़ा आ रहा था। अमरकुमार को प्रसन्न करने के लिए... उसे खुश करने के लिए अन्य छात्र प्रयत्न करते रहे... पर अमर की खिन्नता दूर नहीं हुई। किसी भी छात्र-छात्रा ने दुपहर का भोजन नहीं किया। सभी के खाने के डिब्बे बंद ही रहे | सुरसुंदरी तो जैसे पूरी पाठशाला में अकेली - सी हो गई थी। कोई भी छात्र या छात्रा उसके साथ बात तक नहीं कर रहा था। चूंकि सबको मालूम था कि अमरकुमार क्यों उदास है। सुरसुंदरी का मन व्यथा से अत्यंत व्याकुल हो उठा।
अमरकुमार ने आज भी पाठशाला जल्दी बंद कर दी। सभी छात्र-छात्रा चले गये। पर सुरसुंदरी अपनी जगह पर बैठी रही। अमरकुमार पाठशाला के दरवाजे पर खड़ा रहा था। उसका मुँह पाठशाला के मैदान की ओर था। सुरसुंदरी चुपचाप अमर के निकट आकर खड़ी रह गयी। __'अमर'... सुरसुंदरी ने काँपते स्वर में अमर को आवाज दी, पर अमर ने मुँह नहीं घुमाया।
'अमर, मैं अपनी गलती के लिए क्षमा माँगती हूँ...' सुरसुंदरी अमरकुमार के सामने जाकर खड़ी रही। उसकी आँखों में से आँसू बहने लगे थे। _ 'अमर, मेरे अमर... क्या तू मुझे माफ नहीं करेगा? तू मेरे साथ नहीं बोलेगा? मेरी ओर भी नहीं देखेगा? ...अमर..!!!' ___ अमरकुमार की आँखे गीली हो उठीं। सुंदरी के साथ नहीं बोलने का... उसकी ओर नहीं देखने का उसका संकल्प अब बरफ बनकर पिघल रहा था। उसने धीरे से आँखे उठायी... उसने सुरसुंदरी की ओर देखा और फिर पलकें गिरा दी। __ 'अमर, मैंने तेरा अपमान किया है। तू मुझे जो जी में आये वह सजा दे! मैंने तुझे कटुवचन कहे हैं, तू मुझे शिक्षा दे कर ...अमर,... तू मुझ पर गुस्सा
For Private And Personal Use Only