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राज को राज ही रहने दो 'तब तो मानना ही पड़ेगा न?' 'तो ले... मेरे इस घोड़े को सम्हालना | मैं इस मृत देह में प्रवेश करूँगा। यह मृतदेह जिंदा हो उठेगा।'
'और आपकी देह का क्या होगा?' 'वह मुरदे की भाँति पड़ी रहेगी।' 'फिर?'
'फिर मैं अपनी देह में प्रवेश कर दूंगा... तब यह ब्राह्मण का शरीर वापस मुरदा बन जाएगा। वह मृत देह हो जाएगा।'
राजा घोड़े पर से नीचे उतरा | घोड़ा कुबड़े को सौंपकर उसने मंत्र स्मरण किया। उसकी आत्मा ने विप्र के मृतदेह में प्रवेश कर दिया। विप्रदेह-ब्राह्मण का शरीर सजीव हो उठा। राजा का शरीर निश्चेष्ट-निष्प्राण होकर पड़ा रहा। ब्राह्मण के शरीर में बैठा हुआ राजा कुबड़े से पूछता है :
'देखा न मंत्र का प्रभाव?'
'हाँ, महाराजा! अब मैं भी यही प्रयोग करता हूँ...' यों कहकर तुरंत उसने मंत्र का स्मरण किया । और राजा के मृतदेह में प्रवेश कर दिया। कुबड़े का शरीर निष्प्राण हो गया।
कुबड़ा राजा हो गया... राजा तो ब्राह्मण के शरीर में ही था। राजा तो सकपका गया उसने पूछा : 'तूने यह मंत्र सीखा कब?' कुबड़ा अब हँसता हुआ कहता है... 'आपके मुँह से सुन-सुनकर...।'
राजा ने कहा : 'ठीक है... तूने सीखा... मुझे कोई एतराज नहीं है... अब तू मेरे शरीर में से निकल जा... ताकि मैं पुनश्च अपने शरीर में प्रवेश कर सकूँ?' __कुबड़ा ठहाका मारकर हँसा और बोला : अब मैं इस शरीर को छोडूं? इतना मूर्ख थोड़े ही हूँ... अब तो मैं ही राजा हो गया हूँ... तू तेरे इस ब्राह्मण के शरीर में रहकर भटकते रहना... यों कहकर वह घोड़े पर सवार होकर नगर में आ गया.. राजमहल में गया । अंत:पुर में जाकर रानी से मिला... और राजा की भाँति जीने लगा।
इधर राजा के पछतावे का पार नहीं है... पर अब उसकी सही बात को भी माने कौन? कोई सबूत तो था नहीं? वह राजा बेचारा ब्राह्मण के वेश में परदेश चला गया।
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