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नई दुनिया की सैर
१५९ जैसा सौंदर्य छलक रहा था... उतनी ही पवित्रता उभर रही थी वहाँ के वातावरण में। वहाँ की हवा की लहरों पर मानो वैराग्य के संदेश लिखे हुए नजर आते थे। 'कितनी अद्भुत जगह है यह?' सुरसुंदरी बोल उठी : 'इससे भी ज्यादा अद्भुत है, उन महामुनि के दर्शन ।' रत्नजटी सुरसुंदरी को लेकर, जिस पर्वत गुफा में मुनिराज थे वहाँ चला । सुरसुंदरी के लिए सुख का अरूणोदय हो चुका था। उसका मन खुशी से छलक उठा था। उसके प्राणों में प्रसन्नता के फूल खिल उठे थे। दु:खद भूतकाल का कारवाँ बहुत पीछे छूट चुका था... एक नया सवेरा उसको सुख का संदेश देने के लिए निखर-निखर कर आ रहा था।
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