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नई दुनिया की सैर
'वाह! क्या सतेज स्मृति है तेरी। पर यह सब तूने पढ़ा किसके पास?' रत्नजटी ने पूछा।
'मेरी उपकारिणी साध्वी माता के पास । उनका नाम है सुव्रता।'
'देख नीचे जरा। वह वारूणीवर समुद्र है... इस समुद्र के पानी को जो पीता है... उसे नशा चढ़ता है।'
सुरसुंदरी उस शांत महासागर को निहारती ही रही, न ज्वार न भाटा... न किसी तरह का समुद्री तूफान | काश, मेरी जिंदगी भी ऐसी होती तो? नहीं... फिर यह सब देखने को नहीं मिलता! 'अब जो आएगा वह है क्षीरवर द्वीप और इसके बाद क्षीरवर समुद्र ।' ___ 'हाँ... क्षीरोदधि समुद्र का पानी तो देवलोक के देव तीर्थंकर परमात्मा के जन्माभिषेक के वक्त ले आते हैं। यह पानी यानी निरा दूध ।' ।
'हाँ... इस समुद्र के पानी का रंग दूध जैसा ही सफेद होता है... इसलिए तो इसका नाम क्षीरोदधि है।' 'लो, हम क्षीरोदधि पर आ गये। सचमुच, पानी दूध जैसा ही है!' 'अब जो द्वीप आएगा... उसका नाम घृतवर द्वीप।'
'और इसके बाद आएगा, घृतवर समुद्र । द्वीप का जो नाम, उसी नाम का समुद्र।'
विमान तीव्र गति से उड़ रहा था । लाखों योजन के द्वीप-समुद्रों को बात ही बात उलांघ रहा था । धृतवर द्वीप व घृतवर समुद्र पर से गुज़रकर विमान अब ईक्षुवर द्वीप पर से उड़ा जा रहा था।
'ईक्षुवर समुद्र का पानी वास्तव में गन्ने के रस जितना ही मधुर होता है। अतएव इस समुद्र का नाम ईक्षुवर समुद्र है।' रत्नजटी ने कहा।
'सर्वज्ञ वीतराग भगवान यह सब अपने पूर्णज्ञान की दृष्टि से देखते रहते हैं। कितना यथार्थ ज्ञान! कितना वास्तव दर्शन!' __ 'अब आएगा नंदीश्वर द्वीप! देवों का विद्याधरों का शाश्वत तीर्थ ।' रत्नजटी के स्वर में भक्ति का पुट था। ___ 'हाँ..हाँ.. वे दूर-दूर जो उत्तुंग पर्वत दिखायी दे रहे हैं। वे शायद नंदीश्वर द्वीप के ही पहाड़ होंगे।' 'बस... अब अपन पहुँचने में ही हैं।'
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