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नई दुनिया की सैर
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। २४. नई दुनिया की सैर!
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'कह बहन! मेरी शक्ति व सामर्थ्य की मर्यादा में जो भी तेरा काम होगा मैं ज़रूर करूँगा।'
'तुम जिस नंदीश्वर द्वीप की यात्रा कर आये... उस नंदीश्वर द्वीप की यात्रा मुझे नहीं करवा सकते?' ___'क्यों नहीं? ज़रूर... जरूर! करवाऊँगा मेरी बहन! नंदीश्वर द्वीप तो देव व विद्याधरों का महान् शाश्वत् तीर्थ है...। पर है बहुत दूर | फिर भी मेरा यह विमान हवा की गति का है। हम कहीं भी रूके बगैर... सीधे चलेंगे। कहीं उतरना नहीं पड़ेगा बीच में ।' ___ 'पर रास्ते में आनेवाले द्वीप-समुद्र उन सबकी पहचान तो मुझे करवानी ही होगी।' सुरसुंदरी हर्ष से पुलकित हो उठी। उसने साध्वीजी के पास 'मध्यलोक' का अध्ययन किया था। नंदीश्वर द्वीप के बारे में ढेर सारी जानकारी उसके पास थी। आज यकायक... वह उस अद्भुत द्वीप की यात्रा करने के सौभाग्य को प्राप्त की।
जन-साधारण की, मामूली आदमी की औकात नहीं उस द्वीप पर जाने की। विशिष्ट विद्याशक्तिवाले मनुष्य ही वहाँ जा सकते हैं। रत्नजटी विद्याधर राजा था। उसके पास विशिष्ट प्रकार की विद्याशक्तियों थी।
रत्नजटी ने विमान को गतिशील बनाया। थोड़े ही क्षणों में विमान आकाश में ऊपर चढ़ गया व पूर्वदिशा की ओर तेज गति से आगे बढ़ा।
'बहन, अभी हम जंबूद्वीप में से गुज़र रहे हैं। अभी तुझे मेरूपर्वत दिखायी देगा। बिलकुल सोने का बना हुआ है, तू देखकर ठगी-ठगी रह जाएगी। अपना विमान मेरूपर्वत के समीप से ही गुजरेगा।'
सुरसुंदरी ने सोने का मेरूपर्वत देखा... वह बोल उठी, 'अदभुत! अद्भुत! कितना ऊँचा... आँख ठहरती ही नहीं। नहीं, भाई नहीं... नजर जाएगी भी कैसे? पूरे लाख योजन की ऊँचाई है उसकी ।'
'अब कुछ ही देर में अपना विमान लवणसमुद्र के ऊपर से उड़ेगा।' । 'हाँ... दो लाख योजन विस्तृत लवण समुद्र है न? सारे जंबूद्वीप के चारों ओर घेरा किये हुए फैला है।'
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