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आखिर 'भाई' मिला!
१५१ भरसक कोशिश करने लगी... भारंड पक्षी ने जब जाना कि 'यह कोई लाश नहीं है... यह तो जिंदा स्त्री है। उसने अपनी चोंच को खोला...
सुरसुंदरी आकाश में फेंकी गयी। उसी समय आकाश में एक विमान चला जा रहा था। विमानचालक ने आकाश में इस रोमहर्षक दृश्य को देखा... सुरसुंदरी को भारंड पक्षी की चोंच से नीचे गिरते देखा... विमानचालक ने अपने विमान में तेजी से गिरती सुरसुंदरी को सावधानी से पकड़ लिया।
सुरसुंदरी विमान में गिरते ही बेसुध होकर लुढ़क गयी... विमानचालक ने उपचार वगैरह करके उसे सचेत कर दिया। जगकर उसने अपने सामने किसी अनजान खूबसूरत युवक को देखा । वह चौंकी। सावधान हो गई। मौका देखकर विमान में से कूदने के लिए तैयार हो गयी। विमान चालक ने उसको पकड़ लिया। 'मुझे रोको मत। मुझे जीना नहीं हैं... मुझे मर जाने दो।' ___ 'तू है कौन? तेरा परिचय तो दे मुझे? तू क्यों मर जाना चाहती हो? ऐसी किस आफत में फँसी हो?'
तुम क्या करोगे, यह सब जानकर? मैं अच्छी तरह जानती हूँ... तुम मर्दो को। तुम मुझे अपनी पत्नी बनाने की बात करोगे... पर यह बात कभी भी हो नहीं सकेगी। तुम जैसे आदमी मुझे इससे पहले भी मिल चुके हैं।'
'बहन! हाथ की पाँचो ऊंगलियाँ एक सी नहीं होती। दुनिया में सभी आदमी कामी या लंपट ही होते हैं क्या? मैं तुझे मेरी बहन मानूँगा | तू मुझे भाई मान | अपना मुझे परिचय दे। मैं तुझे सहायक होऊँगा। तेरे दुःख को, जैसे भी हो दूर करने का प्रयत्न करूँगा।' ___ सुरसुंदरी ने कहा : पहले तुम विमान को आकश में रोक दो। या फिर ज़मीन पर उतारो... फिर मैं तुम्हे अपना परिचय दूंगी।'
विमानचालक ने आकाश में अपना विमान स्थिर किया | सुरसुंदरी ने अपनी रामकहानी शुरू से लेकर आज तक की कह सुनायी।
विमानचालक ने एकाग्रता-पूर्वक... सहानुभूति के साथ सारी बात सुनी। उसे एक महासती जैसी स्त्री बहन के रूप में मिलने का आनंद हुआ।
सुरसुंदरी ने पूछाः 'तुम कौन हो? अपना परिचय करा दो?' 'बहन, अब मैं अपना परिचय दूंगा। वैताढ्य पर्वत का नाम तो तूने सुना होगा?'
'हाँ... वैताढ्य पर्वत पर तो विद्याधर राजाओं के नगर हैं।'
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