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आखिर 'भाई' मिला!
१५० किसी औरत को परेशान मत करना। किसी की इज्जत पर हाथ मत डालना। वरना मैं तुम्हें एक-एक को काटकर जमीन में गाड़ दूंगा।'
लुटेरों ने पल्लीपति की आज्ञा को माथे पर चढ़ाया। पल्लीपति ने जब सारी बात कही तब तो वे बेचारे काँपने लगे। उन्होने कसम खा ली फिर कभी किसी भी औरत को बुरी नज़र से नहीं देखेंगे।
__ + + + सुरसुंदरी चलती रही सबेरे तक। वह एक भरे-पूरे सरोवर के निकट पहुँची। सरोवर की मेड़ पर चढकर देखा तो सरोवर में स्वच्छ पानी हिलोरें ले रहा था। हंसों के बच्चे तैर रहे थे पानी में।
सुरसुंदरी को प्यास लगी थी। उसने पानी पिया। वह थकान से चूर हो रही थी। किनारे पर के वृक्षकी छाया में जमीन पर ही लेट गयी सुरसुंदरी, आराम करने के इरादे से । कुछी ही देर में उसकी आँखें मूंद गयीं... वह नींद में खो गयी।
शासनदेवी के प्रत्यक्ष दर्शन होने के बाद सुरसुंदरी ने अनुमान लगाया था कि अब लगता है... मेरे दुःख के दिन बीत गये... पुण्य के उदय बगैर देवीदेवता का दर्शन होता नहीं।' इस अनुमान ने सुरसुंदरी के दिल में आशा, उमंग और आनंद भर दिया था। वह आश्वस्त हो चुकी थी। 'अब जल्द अमर से मिलन होना चाहिए।' वह गहरी नींद में डूबी थी।
इतने में वहाँ एक विराटकाय पक्षी आया... और सुरसुंदरी के समीप बैठा... वह था भारंड पक्षी । ___ भारंड पक्षी का पेट एक होता है... उसकी ग्रीवा दो कान व आँखें चारचार होती हैं। पैर तीन होते हैं... बोली वह मनुष्य की बोलता है... उस के मन भी होता है।
भारंड पक्षी ने सुरसुंदरी को देखा। उसने मृत देह समझकर सुरसुंदरी को अपने बड़ी चोच में जकड़ा और वह आकाश में उड़ने लगा। ___ ज्यों-ज्यों भारंड आकाश में ऊपर उड़ने लगा... त्यों-त्यों ठंडी हवा के थपेड़े उसे लगने लगे। हवा के झोंकों ने सुरसुंदरी को जगा दिया... अपने आपको भारंड पक्षी के मुँह में फँसी देखकर... वह चीख उठी... छूटने के लिए
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