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छोटी सी बात
पिता के पास तो कितना बड़ा राज्य है ... पैसे का तो पार नहीं है! वैभव कितना बड़ा है...? पर उसके दिल में ओछापन कितना है ! पर मैं उसे छोडूंगा नहीं। उसने मेरा जो अपमान किया है, उसका पूरा बदला लूँगा । आज नहीं तो कल... अरे, जिंदगी में कभी भी मौका आने पर मैं भी देखूँगा कि वह किस तरह सात कौड़ियों में राज लेती है? कितनी शेखी बधा रही थी ? सात कौड़ियों में राज ले लेती ! आयी बड़ी राज लेनेवाली ! जबतक मैं अपने अपमान का बदला नहीं लूँगा, तब तक मुझे चैन नहीं आएगा ।
अमरकुमार ने पाठशाला के दरवाजे बंद किये। ताला लगाया और चल दिया अपनी हवेली की ओर । किशोर अमर का मन व्यथित था। उसके सुंदर चेहरे पर विषाद की बदली छायी थी । हवेली में पहुँचकर सीधा ही अपने अध्ययन कक्ष में गया और पलंग में औंधा गिर पड़ा।
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सुरसुंदरी नाराजी, गुस्से और खिन्नता से भरी हुई पहुँची अपने महल में । माता रतिसुंदरी को मिले बगैर ही सीधी अपने शयनकक्ष में जाकर पलंग में गिरी और फफक-फफक कर रोने लगी । आधी घटिका तक वह रोती रही... आँसुओं के साथ-साथ उसके दिल का गुस्सा भी बह गया। उसका दिल हलका हुआ।
‘ओह... आज यह क्या हो गया? मैं कितना बुरा बोल बैठी? उफ्, आज मुझे क्या हो गया? अपने अमर को मैंने कितना फटकार दिया ? ओह, उसने मुझे पूछे बगैर मेरी सात कौड़ियों लेकर दावत भी दी, तो उसमें मेरा कौनसा राज्य लुट गया ? मेरी हिस्से की मिठाई मुझे देते वक्त वह कितना खुश था। मैंने आज उसको जरा-सी बात के लिए नाराज कर दिया। उसके दिल को तोड़ दिया। सभी छात्रों के बीच उसका अपमान किया । अरे, कैसा भी हो... पर वह पाठशाला का श्रेष्ठ विद्यार्थी है।
उसकी चतुराई पर तो मैं भी गर्व करती हूँ । मुझे उसका बोलना अच्छा लगता है।... उसका चेहरा प्यारा लगता है... उसकी चाल अच्छी लगती है.... उसकी हर एक बात मुझे पसंद है । और आज मैंने उसे जहरीले शब्द कह डाले। हाय, धिक्कार है मुझे !
अब? अब क्या वह मुझसे नहीं बोलेगा ? मेरी ओर देखेगा भी नहीं । हाँ, नहीं... बोलेगा और न ही मेरी ओर देखेगा ।
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