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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३८ आदमी का रूप एक सा! उन्होंने परस्पर बात करके मगरमच्छ को सावधानी से चीरने का निर्णय किया । काफी जीवट से उन्होंने मगरमच्छ को चीरा । अंदर में सुरसुंदरी को बेहोश स्थिति में देखा। वे पहले तो चौंक उठे। फिर बड़े सलीके से आहिस्ता-आहिस्ता उसको बाहर निकालकर जमीन पर सुलाया। सूखे कपड़े से उसके शरीर को पोंछा। सभी धीवर सुरसुंदरी का बेजोड़ सौंदर्य देखकर पागल हो उठे। उन्होंने इतना सौंदर्य सपने में भी नहीं देखा था। 'यह स्त्री जिंदा है... मैं इसे अपनी पत्नी बनाऊँगा।' धीवरों का मुखिया मुँह से लार टपकाता हुआ बोला। __'यह नहीं हो सकता... इसे हम सबने मिलकर निकाला है, तू अकेला क्यों इसका मालिक होगा?' एक बूढे धीवर ने उसकी बात को काट डाला। 'तो फिर इस औरत का करोगे क्या?' मुखिया झुंझला उठा। 'मुझे एक विचार आया । हम इस औरत को अपने नगर के राजा को भेंट के तौर पर दे दें, तो शायद राजा हम लोगों को बहुत बड़ा इनाम देगा... अपन इस इनाम को आपस में बाँट लेंगे। क्यों ठीक है न?' । __हाँ... यह अच्छी बात है... महाराज को इतनी सुंदर रानी मिल जाएगी... और हम को रुपयों की थैली! वाह, क्या कहना? दोनों का काम बन जाएगा।' ‘पर पहले इस औरत को होश में तो लाओ!' एक धीवर बोला। मुखिया समीप के जंगल में जाकर किसी वनस्पति के पत्ते तोड़ लाया। दोनो हाथों में पत्तों को मसलकर उसका रस सुरसुंदरी की नाक में बूंद-बूंद करके डाला। फिर उसी रस को उसके शरीर पर घिसने लगा। धीरे-धीरे सुरसुंदरी की बेहोशी दूर होने लगी। उसने आँखें खोली... चारों तरफ नज़र फेरी... अनजान जंगली जैसे लोगों को देखकर वह चीख उठी... उसका शरीर काँपने लगा... 'मैं कहाँ हूँ...? तुम सब कौन हो?' 'तू सरोवर के किनारे पर है... तुझे मगरमच्छ निगल गया था। हमने उसे चीरकर तुझे जिंदा बाहर निकाला है; अब तुझे हम अपने राजा मकरध्वज को भेंट के रूप में दे देंगे। तू रानी बन जाएगी... महारानी बनेगी।' ___ 'नहीं... नहीं...! मुझें नहीं होना है रानी... मुझे मरने दो...' सुरसुंदरी सरोवर की तरफ दौड़ी पर धीवरों ने उसे पकड़ लिया... और उसे लेकर नगर की ओर चल दिये। For Private And Personal Use Only
SR No.009637
Book TitlePrit Kiye Dukh Hoy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages347
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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