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सुरसुंदरी सरोवर डूब गई! 'हें क्या कहा? यक्षराज?' 'हाँ... यक्ष उसे ढाढ़स दे रहा था : 'तू चिंता मत कर बेटी, यह वेश्या यदि तेरे शील का खंडन करवाएगी तो मैं इसे जिंदा ही चबा डालूँगा।' ___ 'क्या कहा? तूने ऐसा सुना था?' लीलावती डर के मारे काँपने लगी। उसने सरिता के दोनों हाथ पकड़ लिये।
हाँ, मैंने अपने कानों से सुना था।' 'तो फिर मुझे आज तक बताया क्यों नहीं?' 'शायद तुम्हें भरोसा नहीं होगा...' 'तो क्या वह यक्षराज ही उसे उठा ले गया होगा?' 'मुझे तो ऐसा ही लगता है। जो हो सो अच्छा! अब उसे खोजने की कोशिश भी न कीजिए... क्या पता यदि यक्षराज नाराज हो जाएगा तो हम सबको...'
नहीं... नहीं... सरिता, मुझे नहीं चाहिए वह कलमुँही सुंदरी, कम्बख्त ने सवा लाख रुपये गँवाए मेरे!'
‘पर देवी! हम जिंदा रहे, यही गनीमत है, पैसा तो इधर गया... उधर से आ जाएगा।'
'हाँ... अपन जिंदा रहें यही बहुत । अब ऐसी किसी भी सुंदरी को नहीं खरीदूंगी।'
सुरसुंदरी सरोवर में कूद गिरी।
डुबकी खाकर जैसे ही वह पानी की सतह पर आयी कि एक बहुत बड़ा मगरमच्छ उसे निगल गया। बेहोश सुरसुंदरी मगरमच्छ के पेट में बिल्कुल अखंड-अक्षत उतर गयी। मगरमच्छ का एक दाँत भी उसके शरीर में लगा नहीं। ___ मगरमच्छ तैरता हुआ सरोवर के सामनेवाले किनारे पर चला गया। शिकार मिलने की खुशी में... वह खुद ही धीवरों का शिकार हो बैठा । किनारे पर धीवरों ने अपनी जाल बिछाकर तैयार रखा था।
किनारे पर खड़े धीवरों ने देखा कि बड़ा मगरमच्छ जाल में फँस गया है... वे बड़े खुश हुए | मगरमच्छ को बाहर निकाला। उन्होंने मगरमच्छ के पेट को काफी फूला हुआ देखा... 'अवश्य, इस मगरमच्छ ने किसी बड़े जलचर को निगला लगता है।'
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