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सुरसुंदरी सरोवर डूब गई! 'तू जल्दी जा... और सुरसुंदरी को ले आ।' सरिता वैद्यराज के यहाँ पहुँची। वैद्यराज से पूछा : 'वैद्यराज, सुंदरी कहाँ है?' 'वह तो कभी की यहाँ से चली गई है।' 'पर अभी वह हवेली पर पहुँची नहीं है।' 'क्या पता कहाँ गयी होगी? यहाँ से तो दवाई लेकर चली गयी।'
सरिता दौड़ती हुई लीलावती के पास पहँची... उसके चेहरे पर हवाईयाँ उड़ रही थी। चिंता एवं विह्वलता की रेखाएँ उभर रही थी। ____ 'देवी, सुंदरी तो वहाँ नहीं है... वैद्यराज ने कहा कि वह तो दवाई लेकर वहाँ से कभी की निकल गयी।'
'फिर वह गई कहाँ?' नगर में उसकी तलाश कर ।' लीलावती गुस्से व शंका से भड़क उठी थी। 'सरिता, तुझे तो मालूम है न कि मैंने उसे सवा लाख रुपये देकर खरीदा था... वह इस तरह आँखों में धूल झोंककर चली जाए... यह तो...।'
'देवी, भागने की तो उसमें हिम्मत दिख ही नहीं रही थी। कितनी गरीब गाय-सी लग रही थी...?'
'अब बातें बनाना छोड़... जाकर तलाश कर ।' लीलावती ने नौकरों को भेजा तलाश करने के लिए और खुद राजसभा में पहुँची। राजा से शिकायत की। राजा ने तुरंत चारों ओर आदमी भेजकर तलाश करावायी। पर शाम ढलते-ढलते तो सभी खाली हाथ वापस आये। लीलावती के होश उड़ गये, वह फफक-फफककर रो दी।
सरिता ने लीलावती से आहिस्ता से कहा : 'देवी, आप रोओ मत! सवा लाख रुपये तो तुम चुटकी बजाते कमा लोगी। वह सुंदरी गई तो मरी बला टली, वह यदि रहती तो अपन सब की जान खतरे में थी।' 'क्या बात कर रही है, सरिता! साफ-साफ कह जो कहना हो।' 'मैं सही बात कर रही हूँ, मालकिन... मैं सच बोल रही हूँ।' 'पर कुछ बताएगी भी या बकती ही जाएगी?'
'आप नहीं मानेगी, पर मैंने एक रोज उस सुंदरी को किसी खोफनाक यक्षराज से छिपकर बातें करते देखा था। मैं दरवाज़े की ओट में छिपकर खड़ी थी।
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