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चौराहे पर बिकना पड़ा!
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नारी का शील-रत्न तो संसार का श्रृंगार है, दुनिया का सौभाग्य है। स्त्री एवं सागर मर्यादा के प्रतीक - वे कभी भी मर्यादा उल्लंघन नहीं करते। ___मर्यादावान सागर के उत्संग में सुरसुंदरी अपनी मर्यादा की रक्षा कर रही थी। अपने शीलरत्न की भली-भांति सुरक्षा कर रही थी। वह थी तो व्यापारी पत्नी, पर उसकी नस-नस में एक क्षत्राणी का खून बह रहा था।
सोवनकुल के किनारे पर फानहान ने अपने जहाज़ों को लंगर डाला। उसने सुरसुंदरी से कहा : ___ 'यदि तेरा मन हो तो सोवनकुल नगर में तेरे पति की तलाश करें। हम नगर में चलें।' __'वे यहाँ नहीं हो सकते। उनके जहाज़ भी इस किनारे पर नज़र नहीं आ रहे हैं। ___ 'नहीं दिखते तो क्या हुआ? क्या पता... तुझे दुःखी करने के बाद वह आफत में फँस गया हो... उसके जहाज़ डूब गये हों, या लुट गये हों... और वह खुद रास्ते का भटकता भिखारी हो गया हो... किसी नगर की गलियों में! ऐसा नहीं हो सकता क्या?' ___'नहीं... नहीं, ऐसी बूरी बातें मत करो। ऐसा अशुभ मत बोलो। मैं तो हमेंशा उनके मंगल की कामना किया करती हूँ... उनका कल्याण हो... फिर भी, यदि तुम कहते हो तो हम इस नगर में चलें। कोई सिंहलद्वीप का नगरजन मिल जाए तो उससे भी अमरकुमार के बारे में पूछ सकेंगे।' 'सही कहना है तेरा! चल, हम चलें।'
सुरसुंदरी को लेकर फानहान ने सोवनकुल नगर में प्रवेश किया। नगर की सजावट देखते-देखते दोनों नगर के मध्य भाग में आ पहुँचे। वहाँ पर फानहान के जहाज़ के रक्षक सैनिक पहले ही से उपस्थित थे। अचानक फानहान ने सुरसुंदरी की और पलटकर तीखी जबान में कहा : ओ मदांध नारी, अभागिन औरत, यहीं पर खड़ी रह जा। कहीं भी इधर-उधर भागने की तनिक भी कोशिश मत करना। मेरे सैनिक तैनात हैं चारों ओर! तेरा पति तुझे खरीदने के लिए अपने आप चला आएगा। यहाँ तुझे में पूरे सवा लाख में बेचूँगा। समझी न? बहुत रोब दिखा रही थी! चुपचाप खडी रहना।'
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