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चौराहे पर बिकना पड़ा!
सुरसंदरी फानहान के इस बदले हुए रूप को देखकर सदमें से शून्यमनस्क हो गयी। फानहान का इतना घिनौना रूप देखकर उसकी मानो वाणी मर चूकी थी।
चौराहे के बीचोबीच एक लंबा-ऊँचा चबूतरा था । फानहान ने सुरसुंदरी को उस चबूतरे पर खड़ी कर दिया, खुद उसके पास खड़ा रहकर चिल्लाने लगा।
'सुनो... भाई! सवा लाख रूपये देकर, जिस किसी को चाहिए, इस रूपसुंदरी को यहाँ से ले जाए! भारत की इतनी खूबसूरत परी तो सवा लाख में भी फिर दुबारा नहीं मिलेगी। जिसे चाहिए वह ले ले! ऐसा माल बारबार नहीं आता!' ___ तमाशे के लिए आमंत्रण? रास्ते से गुज़रते हुए लोग एकत्र होने लगे। इर्दगिर्द के मकान-दुकान के लोग उतरकर इस भीड़ को बढाने लगे। वैसे तो इस नगर में प्रायः आदमी-औरत का क्रय-विक्रय बीच बाजार में होता था...इसलिए लोगों को कोई आश्चर्य नहीं था।
'सवा लाख रूपये तो बहुत ज्यादा हैं... जरा क़ीमत कम करो न?' भीड़ में से एक मनचले जवान ने कहा। ___'एक पैसा भी कम नहीं होगा... यह तो भारत की हूर है... यह तो सस्ते का सौदा है, वरना इस परी के साथ कुछ समय गुजारने के लिए भी हजारो रुपये लगते हैं। तुम्हें चाहिए तो लो... कोई जबरदस्ती नहीं। हिम्मत हो और रूप की तलाश हो, तो ले जाओ इस अप्सरा को सवा लाख रुपये नकद देकर!'
भीड़ बढती जा रही थी। सभी टुकुर-टुकुर सुरसुंदरी को देख रहे थे। सुरसुंदरी की आँखें बंद थी। उसके चेहरे पर व्यथा की घनघोर घटाएँ घिर आयी थीं। वह गुमसुम हो गयी थी। अमरकुमार के धोखे का शिकार होने के बाद यह दूसरी बार वह बुरी तरह धोखे का शिकार हो चुकी थी।
इस नगर में किसी के भी दिल में स्नेह या सहानुभूति जैसी बात थी ही नहीं। ऐसे दृश्य तो उन्हें रोज़-बरोज़ देखने को मिलते थे। देश-परदेश के व्यापारी यहाँ आकर आदमियों का सौदा करते-करवाते थे। सोवनकुल में ऐसा घिनौना हीन स्तर का धंधा भी चलता था।
इतने में भीड़ में कुछ बावेला - सा मचा । एक सुंदर पर प्रौढ महिला भीड़
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