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चौराहे पर बिकना पड़ा! करने पर उतारू हो उठा था। पर मैंने चतुराई से सुरक्षा कर ली। आखिर मैं अपनी इज्जत बचाने के लिए इस महासागर में कूद गयी। उसी समय उसका जहाज़ समुद्र के तूफान में फँस कर टूट गया। वह धनंजय अपने काफिले के साथ सागर में समा गया | मैंने यह सब खुद अपनी आँखो से देखा है। उसी समय टूटे जहाज़ की एक पटिया मेरे हाथ लग गयी। और मैं उसी पटिया के सहारे तैरती-तैरती नगर बेनातट के किनारे पर चली आयी... फिर जो कुछ हुआ... तुम्हें मालूम है।'
फिर से कह रही हूँ... यदि तेरी इच्छा भी धनंजय की भाँति इस समुद्र की गोद में समा जाने की हो, तो हिम्मत करना। गनीमत होगी, इस बात को ही समुद्र में फेंक दे। फिर कभी ऐसी बात होठों पर गलती से भी मत लाना।
एक ही साँस में सुरसुंदरी सब कुछ बोल गयी। वह हाँफने लगी थी। फानहान सोच में डूब गया। सुरसुंदरी ने गरजते-लरजते सागर की ओर देखा। फानहान खड़ा होकर कमरे में चक्कर काटने लगा। _ 'यह औरत रोजाना कोई मंत्र जपती है, वह तो मैं खुद देखता हूँ। क्या पता, इसे किसी दिव्य सहायक का सहारा हो... इसने जिस दुर्घटना का बयान किया... वह सच भी हो सकता है। मुझे अपना सर्वनाश नहीं करना है। इसके ऊपर मैं जबरदस्ती करने जाऊँ... और यह समुद्र में छलाँग लगा दे तो? फिर मेरा जहाज़ समुद्र में टूट गिरे तो?' ___ 'नहीं... नहीं, मैं तो व्यापारी हूँ... पैसा कमाने को निकला हूँ... मेरे पास पैसा आयेगा तो ऐसी कई औरतों को मैं आसानी से प्राप्त कर लूँगा। इसको मुझे भरोसा दिला देना चाहिए। कहीं मेरे डर से यह समुद्र में कूद न जाए।'
उसने सुरसुंदरी की ओर देखा | सुरसुंदरी समुद्र की तरफ ताक रही थी। ___ सुंदरी, मैं अपनी बात छोड़ देता हूँ। तू निश्चित रहना । अब मैं तेरे कमरे में भी नहीं आऊँगा। मुझे मालूम नहीं था कि तुझ पर देवों की कृपा है... मेरी गलती को माफ कर देना।
'तुमने मेरी जान बचायी है... तुम मेरे उपकारी भाई हो... मेरे दिल में तुम्हारे लिए जरा भी नफरत नहीं है।' ____फानहान अपने कमरे में चला गया। वह व्यापारी था। उसे पैसे की ख्वाहिश थी। उसके दिमाग में कौई और ही साजिश आकार ले रही थी।
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