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फिर वही हादसा उसने | मुख्य रास्ते पर एक भी आदमी नजर नहीं आ रहा था । इर्दगिर्द के मकानों में से लोग चीख रहे थे। __ 'अरे, ओ औरत! भाग... किसी मकान में घुस जा! वरना मर जाएगी... हाथी तुझे कुचल डालेगा पैरों तले। जल्दी चढ़ जा कहीं पर! ओ भली औरत... जा... जा... जल्दी जा।' पर सुरसुंदरी तो गुमसुम-सी चलती ही रही राजमार्ग पर! इतने में उसने सामने से दौड़ते हुए आ रहे मदोन्मत हाथी को देखा।
आलानस्तंभ उखाड़कर वह सड़क पर निकल आया था। शराब की दुकान में तोड़-फोड़ कर उसने शराब पी ली थी - मटके में से! और फिर वह उन्मत्त हुआ, पागल की भाँति दौड़ रहा था। सैनिक लोग उसे न तो बस में कर रहे थे, न ही उसे मारने में सफल हो रहे थे।
सुरसुंदरी घबरा उठी। वह स्तब्ध रह गयी | मौत उसे दो कदम दूर नजर आयी... वह खड़ी रह गयी... सड़क के बीचोबीच। हाथी आया, उसने सुरसुंदरी को सँड़ में उठाया और दौड़ा समुद्र की ओर | लोगों ने बावेला मचा दिया : 'यह दुष्ट हाथी इस बेचारी औरत को या तो पैरों तले रौंद डालेगा... या फिर समुद्र में फेंक देगा... हाय, कोई बचाओ... इस अभागिन औरत को!'
सैनिक लोग दौड़े हाथी के पीछे... पर वे कुछ करें इसके पहले तो हाथी ने सुरसुंदरी को ऊँचे आकाश में उछाल दिया... जैसे गुलेर से पत्थर उछला |
उछली हुई सुरसुंदरी सागर में जाकर गिरी..., पर वह गिरी एक बड़े जहाज़ मे।
वह जहाज़ था दूर देश के एक यवन व्यापारी का | बेनातट नगर में वह व्यापार करने के लिए आया था। उसका नाम था फानहान ।
लोगों की चीख-चिल्लाहट सुनकर फानहान कभी का जहाज़ के डेक पर आकर खड़ा था। उसने अपने जहाज़ मे गिरती एक औरत को देखा। आननफानन में वह उसके पास दौड़ गया | जहाज़ के नाविक और नौकर दौड़ आये।
सुरसुंदरी बेहोश हो गयी थी। उसके सिर के पिछले हिस्से में से खून आ रहा था । फानहान ने तुरंत चोट लगे भाग को धो-कर पट्टी लगा दी। ठंडे पानी की छींटे छिटकर सुरसुंदरी को होश में लाने की कोशिश की।
किनारे पर सैकड़ो नगरवासी इकट्ठे हो गये थे। फानहान ने इशारे से लोगों को समझा दिया कि 'यह औरत बच गयी है... अब वह होश में है।' लोग नगर में लौट गये अपने-अपने घर |
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