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फिर वही हादसा
११२ __ 'नहीं... धनंजय! मैंने जो कहा, वही मुझे कहना था और कुछ नहीं। अब भी बता दे... मेरे पति के पास तू मुझे सही-सलामत पहुँचाना चाहता है?' ___ 'तेरा पति तो मर गया। अब तो तेरे सामने जिंदा यह धनंजय ही तेरा पति है। समझ जा और आ जा मेरे उत्संग में वरना... आज मैं तुझे छोड़नेवाला नहीं!' वह सुरसुंदरी की ओर आगे बढ़ा। ___ 'नमो अरिहंताणं' के धीर-गंभीर स्वर के साथ सुरसुंदरी ने डेक पर से छलाँग लगायी समुद्र के अथाह पानी में!
'सुंदरी... सुंदरी... ओह! दौड़ो... दौड़ो... सुंदरी समुद्र में गिर गयी... बचाओ... बचाओ!'
धनंजय व्याकुल हो उठा। उसकी आवाज सुनकर नाविक लोग दौड़ आये। पर इतने में तो जहाज़ उछलने लगा। सनसनाती हुई तुफानी हवा ने जहाज़ के पाल को चीर दिया । एक जोरदार धमाका हुआ और जहाज़ का खम्भा टूट गिरा | नाविक चिल्लाने लगे... 'सावधान...! सावधान...!' सम्हालो...! सम्हालो...!' उधर आकाश में कड़ाके होने लगे... धुआँधार बारिश होने लगी।
मौजें उछलने लगी... और जहाज़ ने समुद्र के अंदर समाधि ले ली। जहाज़ के साथ धनंजय और उसके आदमी... उसकी संपत्ति सभी कुछ समुद्र के तल में समा गये। जहाज़ के पटिये समुद्र के पानी पर तैरने लगे!
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