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जिंदगी इम्तिहान लेती है
८० ® झरना कितनी सहजता से बहता रहता है... पत्थर की चट्टानों से गुजरता
है... तो रेत के टीलों को भी लाँघ जाता है... पर बहता रहता है... हमें भी
वैसे ही जीना है! झरने की भाँति! ® स्वयं की कोई मान्यता नहीं...कोई आग्रह या दुराग्रह नहीं... जो कुछ
सहजता से सामने आता है... उसे स्वीकार कर लेना! ® स्वीकार में शांति है... सहजता में प्रसन्नता है.. इन्कार में अशांति है...
आग्रह में व्यथा है... ® सहज रूप से परमात्मा के चरणों में अपने आप को पूरी तरह समर्पित कर
दो... परमात्मा का अचिन्त्य अनुग्रह स्वत: बरसने लगेगा। ॐ परमात्मसमर्पण हमें साहजिक बनाता है... जिन्दगी को सहजता से जीना
ही सबसे बड़ी साधना है।
पत्र : १८
प्रिय मुमुक्षु!
धर्मलाभ! तुझे मालूम भी नहीं होगा कि तेरा पत्र मुझे ४ अगस्त को मिलेगा! यह भी तू नहीं जानता होगा कि ४ अगस्त मेरा जन्म दिन है। कैसा अच्छा योगानुयोग बना? खूब प्रसन्नता हुई। इस पत्र में तूने लिखा कि : 'अब तो परमात्मा की पूर्ण ज्ञानदृष्टि में जीवन जीना है! उस परम करुणानिधान के सहारे ही जीवन जीना है।'
कितनी अच्छी बात लिख दी तूने! परमात्मा के प्रति संपूर्ण समर्पण कर दिया तूने | समर्पण के दिव्य दीपक की ज्योति है, सहजता । कोई तनाव नहीं, कोई दबाव नहीं... सहजता से बहता निर्झर का सलिल | बस, बहते रहो निरन्तर! रास्ते में पत्थर आए, तो पत्थर के ऊपर से बह जाओ, रास्ते में गड्ढा आए, तो गड्ढे में से होते हुए बह जाओ....। अपने गन्तव्य के प्रति बहते रहो।
परमात्मसमर्पण से सहजता आती ही है। अपनी निजी कोई आग्रह नहीं, अपना स्वयं का कोई दुराग्रह नहीं, अधिकार नहीं। कितनी सहजता से सीताजी ने वनवास में श्री राम का अनुसरण किया था। सीताजी ने श्री राम
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