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जिंदगी इम्तिहान लेती है
७९ __ एक दूसरी बात याद आ गई! तू जब मेरे पास आया था, तूने मुझे एक बात कही थी : 'मेरा मन आपके पास रहता है और मेरा तन घर में... इससे हृदय कितनी व्यथा अनुभव करता है... आपको कैसे बताऊँ? इसलिए या तो आप मुझे अपने पास रख लो, अथवा मुझे परलोक यात्रा करने दो!' कहा था न? हालाँकि उस समय तू भावावेश में बोल रहा था। शायद तुझे तेरे शब्द याद नहीं होंगे। तेरे हृदय के वे शब्द थे। मैं तुझे अपने पास क्यों न बुला लूँ? मेरे हृदय में तेरे प्रति पूर्ण सद्भाव है, मैं तेरे आत्मविकास में पूर्णरूपेण सहायक बन सकता हूँ, परन्तु तू जानता है न कि यदि तू मेरे पास आ जाएगा तो उसकी प्रतिक्रिया क्या आ सकती है। तेरे आसपास के लोग कितना घोर विरोध करेंगे और अर्थहीन बवंडर पैदा करेंगे। क्या तू उस समय तूफान के लिए तैयार है? रागियों को विराग का मार्ग पसन्द नहीं! भोगी को त्याग का पथ पसन्द नहीं! यदि तेरी पूरी तैयारी हो, दृढ़ मनोबल हो तो तू पत्र मिलते ही मेरे पास चले आना । मैं तो ऐसे बवंडरों से कभी नहीं डरा | राग-विराग का, भोग-त्याग का युद्ध चलता ही रहता है!
परलोक-यात्रा का विचार फालतू है। तू ऐसा विचार करेगा? सहनशीलता का पूरा परिचय देना चाहिए | घरवालों के साथ थोड़ा सा 'को-ओपरेशन' कर लेना चाहिए। ऐसा करने से उन लोगों का व्यवहार कुछ बदल सकता है। यदि परिवर्तन नहीं आता है, तो फिर सोचेंगे। तू चिन्ता नहीं करना। मेरा सहयोग किसी भी समय तुझे मिलेगा ही। अब तो वर्षाकाल आ गया है | पाँच महीने यहाँ डभोई में ही हमारी स्थिरता है। जब अनुकूल संयोग मिले तू यहाँ आ जाना कुछ दिनों के लिए |
वर्षाकाल के पूर्व एक महीना वडोदरा में रुके थे। १५ दिवसीय स्थानिक ज्ञानसत्र का वहाँ आयोजन हुआ था। खूब आनंद आया । युवावर्ग में धर्मतत्व के विषय में गहरी जिज्ञासा पाई। प्रातः ६ बजे पाँच सौ युवक-युवती उपस्थित हो जाते थे। शांति से सुनते थे। अनुशासन का चुस्त पालन करते थे। नोट्स भी लिखते थे। स्कूल कॉलेजों की कोई बुराई वहाँ नहीं दिखाई दी। जाप और ध्यान भी एक दिन कराया... सबने किया! इस ज्ञानसत्र में डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, ग्रेज्युएट्स वगैरह अच्छी तादात में थे।
मेरा और सहवर्ती मुनिवरों का स्वास्थ्य अच्छा है। दैनिक कार्यक्रम सुचारू रूप से चल रहा है। तेरे तन-मन की प्रसन्नता चाहता हूँ| २०-६-७७ डभोई [गुजरात]
- प्रियदर्शन
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