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जिंदगी इम्तिहान लेती है को आग्रह नहीं किया था कि 'आप वन में मत जाइए, आप अयोध्या में ही रहें, राज्य का अपना अधिकार मत छोड़ें।' समर्पित हृदय में ऐसे विकल्प पैदा ही नहीं होते।
सहजता में कोई शिकायत नहीं होती है। जहाँ स्वीकार होता है वहाँ शिकायत कैसे हो सकती है? शिकायतें अशांति में से उत्पन्न होती हैं, स्वीकार में अशांति होती ही नहीं। स्वीकार में तो अपूर्व शांति का आस्वाद होता है। सीताजी ने वनवास में श्री राम के सामने कैकेयी के विरुद्ध या दशरथ के विरुद्ध कोई शिकायत नहीं की थी। जंगल के कष्टों को लेकर भी कोई शिकायत नहीं की थी। हर परिस्थिति का स्वीकार | हर संयोग का स्वीकार | ऐसी सहजता समर्पण के बिना नहीं आ सकती है। समर्पणभाव प्रगट होते ही सहजता आ जाती है। सहजता के साथ ही सब शिकायतें शांत हो जाती हैं। यदि तेरे हृदय में परमात्मा के प्रति समर्पण भाव जागृत हो गया है, तो ऐसा समत्व अवश्य तेरे मन में आ जाएगा। __ जब हर परिस्थिति में सहजता आती है, तब दुःख सहन करने की शक्ति स्वतः जागृत होती है। शिकायत के बिना सहजता से मनुष्य दुःख सहन कर लेता है। 'मैं सहन कर रहा हूँ,' ऐसा भी विचार उनको नहीं आता है। तू अनुभव करेगा कि पूर्वजीवन में जिन दुःखों में तू बेचैनी और संत्रास अनुभव करता था, उन दुःखों में अब तू बेचैन नहीं बनेगा। संत्रस्त नहीं होगा। हाँ, दूसरे जीवों के दुःख देखकर तुझे दुःख होगा, करुणा का भाव तुझे दूसरों के दुःखों से दुःखी करेगा, बेचैन बनाएगा, परन्तु अपने दुःखों से तू कभी अशांत नहीं होगा।
तू सोच सकता है कि 'संसार में ऐसा जीवन संभव हो सकता है?' हाँ, हो सकता है। समर्पणभाव के विकास के साथ यह सब स्वतः संभव होता जाएगा। तुझे संभव बनाना नहीं होगा, संभव बन जाएगा। जब तेरे मन में यह संकल्प हो गया है कि 'अब मुझे परमात्मा के सहारे ही जीवन व्यतीत करना है और आनंद पाना है।' तब आन्तरिक विकास का प्रारम्भ हो ही गया समझना | अब तुझे कुछ नहीं करना है, उस परमशक्ति को तेरे ऊपर काम करने दे।
समर्पित आत्मा परमात्मा के प्रति अभिमुख बनती है। अभिमुख आत्मा में परमात्म-अनुग्रह अवतरित होता है। परमात्म अनुग्रह भी काम करता है। तू उसका काम करने देना । सूर्य आकाश में प्रकाशित है, तू अपना मकान खुला
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