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जिंदगी इम्तिहान लेती है
५२ राग-द्वेष के द्वंद्वों में घोर बेचैनी हुई होगी, तो यह संकल्प शीघ्र हो जाएगा। राग-द्वेष के द्वंद्व प्रिय लगते होंगे, तो यह संकल्प नहीं हो सकेगा। राग-द्वेष कर्तव्य रूप लगेंगे, तब तक प्रेमतत्त्व की पिपासा ही नहीं जगेगी।
प्रिय ममक्ष! परायी चिन्ताओं से मुक्त कर दे मन को। अपने शुद्ध आत्मस्वरूप का... निर्विकार आत्मस्वरूप के चिन्तन में जोड़ दे मन को । 'शांतसुधारस' की वे दो पंक्ति मेरे हृदय को बड़ी अच्छी लगती है...।
'परिहर परचिन्तापरिवारम् ।
चिन्तय निजमविकारम् रे!' आत्मज्ञानी बनने की यह अनिवार्य शर्त है। परद्रव्यों की चिन्ताओं से मन को मुक्त करना! मुक्त मन निजानंद की मस्ती अनुभव करेगा। प्रेमरस का प्याला भर-भर कर पियेगा और दूसरों को पिलायेगा। ___ वर्षावास पूर्ण हो रहा है। अनेकविध प्रवृत्तियों में चार मास व्यतीत हो गये... समय दौड़ता ही रहता है...! अनादि और अनन्त! आत्मा को कालातीत होना होगा। समयातीत होना होगा। देश और काल के बंधनों से मुक्त आत्मा ही परम प्रेमरस की अनुभूति कर सकता है न!
प्रत्युत्तर देगा न? इस विषय में तू कहाँ तक पहुँच सकता है, लिखना । तेरी कुशलता चाहता हूँ। १-११-७६
- प्रियदर्शन
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