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जिंदगी इम्तिहान लेती है
४४ निष्काम भक्ति, निष्काम प्रेम, निष्काम कर्म....आदि बातें तो तूने बहुत सुनी होगी। सकाम भक्ति और सकाम प्रेम की हेयता भी सुनी होगी। किसी स्पृहा, इच्छा, अभिलाषा... कामना से हमें परमात्मभक्ति अथवा गुरुसेवा नहीं करनी चाहिए। कोई भी धर्मक्रिया नहीं करनी चाहिए। यदि हम कोई इहलौकिक फल की अभिलाषा से परमात्मा का पूजन करते हैं, गुरुसेवा करते हैं, दान देते हैं, शील का पालन करते हैं अथवा तपश्चर्या करते हैं, तो सभी क्रियाएँ विष क्रियाएँ बन जाएँगी। विष यानी जहर | जहर मारता है, ये क्रियाएँ भी भले धर्म क्रियाएँ दिखती हो, जीव को मारती हैं। 'यह चमत्कारिक भगवान है, मैं उनका पूजन करूँगा तो मुझे ढेर सारा धन मिलेगा... मेरी आपत्ति दूर हो जाएगी..' इस इच्छा से यदि मनुष्य पूजन करता है, इसका परमात्म प्रेम और पूजन की क्रिया, विषमय बन गई। इस गुरु की आराधना करने से मुझे पुत्र प्राप्ति होगी, केस में मेरी जीत होगी...' इस प्रकार के विचारों से प्रेरित होकर यदि मनुष्य गुरु से प्रेम करता है, गुरु सेवा की क्रिया करता है, तो वह प्रेम विषैला बन जाता है, वह धर्म क्रिया विषैली बन जाती है। 'मैं दान दूंगा तो अपनी इज्जत बढ़ेगी, मुझे ज़्यादा धन की प्राप्ति होगी, मैं शील का पालन करूँगा, तो अपना शरीर स्वस्थ रहेगा, निरोगी रहेगा, मैं तपश्चर्या करूँगा, तो अपनी कीर्ति फैलेगी, मेरा प्रभाव बढ़ जाएगा..' ये सारे के सारे विचार पवित्र धर्म क्रियाओं को जहरीली बना देते हैं। इसमें कोई सच्चा धर्मप्रेम नहीं है। प्रेम निष्काम चाहिए | कोई इच्छा नहीं, कोई कामना नहीं।
किसी बीमार व्यक्ति की सेवा की अथवा किसी दुःखी व्यक्ति को अर्थसहायता दी, यदि प्रत्युपकार की अपेक्षा है मन में- तो वह सेवा और सहायता विषमिश्रित हो गई! कामना ही विष है। इच्छा ही विष है। यह विष हृदय की पवित्रता को, निर्मलता को मारता है। यह विष प्रेम की प्रतिमा को नष्ट कर देता है। प्रेम की वृद्धि नहीं होती है। प्रेम का लक्ष्य है, प्रतिक्षण वृद्धि । ___ मात्र भौतिक धन-संपत्ति और यश-कीर्ति कमाने के लिए भटकता हुआ मनुष्य निष्काम प्रेम कैसे कर सकता है? वह किसी का भी सच्चा प्रेमी नहीं बन सकता | मात्र रूप-सौन्दर्य और यौवन को ढूँढ़ता हुआ मनुष्य प्रेम तो नहीं करता है, प्रेम का घोर उपहास करता है। कहाँ है, परमात्मप्रेम? कहाँ हैं, गुरु प्रेम और कहाँ है, मानव प्रेम? स्वार्थ सिद्धि और शोषणखोरी के अलावा क्या है इस संसार में? मैंने एक किस्सा पढ़ा था :
एक मंदिर था। मंदिर में चमत्कारिक शिवमूर्ति थी। जंगल में था वह
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