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जिंदगी इम्तिहान लेती है मंदिर | परन्तु चमत्कारी भगवान थे न मंदिर में! लोग कई प्रकार की कामनाएँ हृदय में भरकर आते थे। एक भील ही मात्र ऐसा आता था, जिसका हृदय निष्काम था। शंकर से वह खूब प्यार करता था। एक दिन एक सेठ शंकर की पूजा कर ध्यान लगाए बैठे थे, उधर वह भील आया । मुँह में पानी भर के लाया था, हाथ में जंगल के फूल लाया था। पानी से शंकर को स्नान कराया और फूलों से शंकर को सजाया। 'कैसे हो शंकर?' उसने पूछा और शंकर की प्रतिमा बोली : 'मेरे प्यारे भक्त! तू कुशल है न? तुझे जो चाहिए सो माँग! भील ने कहा : 'शंकर! तू ही मेरा है, मुझे और क्या चाहिए?' कह कर भील चला गया... परन्तु वह सेठ तो देखता ही रह गया! 'यह शंकर भी कैसा है?
उस गँवार भील पर प्रसन्न होकर बात करता है... और मैं कितनी भावभक्ति करता हूँ... कैसे बढ़िया फल चढ़ाता हूँ... मिठाई चढ़ाता हूँ... मुझ पर प्रसन्न ही नहीं हो रहा है... जैसा उसका भक्त, वैसा ही यह भगवान लगता
सेठ निःसंतान था। पुत्रप्राप्ति की कामना से वह निरंतर इस मंदिर में आता था। दूसरी बार, जब सेठ मंदिर में आया, उसने देखा तो शंकर की एक आँख नहीं थी! कोई उखाड़ कर ले गया था। सेठ ने उस चोर को दो-चार गालियाँ सुनाई मन ही मन और कहा : 'कल बाजार से काँच की आँख लाकर लगा दूँगा।'
इतने में वह भील आया। आते ही उसने मुँह में से पानी की पिचकारी लगाई शंकर पर और फूल भी चरणों में रख दिए । शंकर की मूर्ति की ओर देखा और चकित रह गया : 'अरे शंकर, तेरी आँख कहाँ चली गई? मेरी दो आँखें और तुझे एक? यह कैसे हो सकता है, शंकर? ले, मेरी एक आँख तुझे देता हूँ... बोलते-बोलते ही अपने तीर से एक आँख निकाल कर शंकर को लगा दी! आँख में से खून की धारा बहने लगी। सेठ देखता ही रह गया। घबरा गया था सेठ । इतने में शंकर की मूर्ति बोली : 'सेठ, देखा मेरे भक्त का प्रेम? वह लेने नहीं आता, देने आता है! तू लेने आता है। तू देता भी है...इससे बहुत ज़्यादा लेने के लिए | तू मुझ से प्रेम नहीं करता, तुझे चाहिए पुत्र! इस भील को कुछ नहीं चाहिए... मुझे निष्काम प्रेमी ही पसंद आता है!'
निरक्षर भील के पास विशुद्ध प्रेम का अमृत था | बुद्धिमान सेठ की भक्ति कामना के हलाहल विष से विषैली बन गई थी। हाँ, प्रेम का सम्बन्ध कोई विद्वत्ता से या बुद्धिमत्ता से ही नहीं है। प्रेम का सम्बन्ध सत्ता और संपत्ति से नहीं होता है। प्रेम का सम्बन्ध है, कामनारहित हृदय से!
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