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जिंदगी इम्तिहान लेती है
४३ ® प्रेम को खोजने व माँगने की बजाय, खुद के प्रेम को लुटाना सीखें। देना
सीखें! ® प्रेम न तो देखने की चीज है... न चखने-सूंघने की। यह तो महसूस करने
की चीज है... अनुभूति का आस्वाद है! ® कामना भरे हृदय से की गई धर्मक्रियाएँ भी जहर बन कर आत्मा को
जनम-जनम तक मारती हैं! 8 इच्छा ही सबसे बड़ा जहर है... यह हृदय की पवित्रता को नष्ट कर देती है! ® रूप-सौन्दर्य और जवानी के आकर्षण में ऐंठनेवाला व्यक्ति, प्रेम की गहराई
को कैसे छू सकता है?
पत्र : १०८
प्रिय मुमुक्षु,
धर्मलाभ, तेरा पत्र नहीं आया परन्तु एक दूसरे व्यक्ति का पत्र आया। उसने तो अगस्त और सितम्बर के पत्र पढ़ कर इतना हर्ष व्यक्त किया है कि उसका पत्र पढ़ते-पढ़ते मैं गद्गद हो गया। उसे तो नया जीवन ही मिल गया है। __ मैंने बताया न कि महर्षि नारद ने अद्भुत प्रेमस्वरूप बताया है। प्रेम का स्वरूप निर्गुण और निष्काम बताया। हाँ, तू संसार में ऐसा प्रेम खोजने जाएगा, संभव है, तू निराश लौटेगा। दूसरे मनुष्यों में ऐसा प्रेम खोजने के बजाय तू अपने जीवन में ऐसा प्रेम तत्व प्राप्त करे, यह मेरा उद्देश्य है। तू दूसरे मनुष्यों में किस प्रकार खोजेगा प्रेम को? प्रेम आँखों से देखने की वस्तु तो है नहीं। कानों से सुनने की बात नहीं। दूसरे मनुष्य में ऐसा प्रेम होगा, तो भी तू नहीं जान पाएगा।
तू किसी व्यक्ति से इस प्रकार प्रेम करके अनुभव कर | गुणरहित और दोषरहित व्यक्ति कहाँ मिलेगा? संसार का प्रत्येक मनुष्य गुण-दोष सहित ही होता है। मनुष्य में गुण-दोष होते हुए भी हमारे प्रेम का आधार, प्रेम का माध्यम गुण-दोष नहीं बने, ऐसी दृष्टि होनी चाहिए | रूप, लावण्य, सौन्दर्य, यौवन... ये भी गुण हैं। हमारे प्रेम के आधार, ये गुण भी नहीं बनने चाहिए! दूसरे शर्त हैं, निष्कामवृत्ति की।
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