________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जिंदगी इम्तिहान लेती है
१९८ ® जब भी प्राचीन ग्रन्थों का अध्ययन करें... अनुशीलन- परिशीलन करें... तब
उन ग्रन्थों के रहस्यों की गहराई में जाने की कोशिश करनी चाहिए। ® संसार की यही तो विचित्रता है... समझदार लोग भी कभी-कभी गलतियों
को दोहराते हैं। @ व्यक्तित्व का अभिमान जब उभरने लगता है... तब फिर आदमी भले-बुरे
को नहीं समझ पाता। ® आजकल की उगती पीढ़ी को न जाने कौन-सा रोग लग गया है? न कोई
लक्ष्य... ना कोई ध्येय... न कोई आदर्श... न कुछ जीवन का आयोजन! ® युवा पीढ़ी को बिगाड़नेवाले-बरबाद करनेवाले अनेक परिबलों में एक परिबल
है, आज के स्वार्थान्ध राजनेता!
पत्र : ४७
प्रिय गुमुक्षु!
धर्मलाभ, तेरा पत्र मिल गया, तेरे मन के विसंवाद दूर हुए, जानकर खूब प्रसन्नता हुई। परंतु जब तक तू स्वयं अपने मन के प्रश्नों का, समस्याओं का, उलझनों का समाधान नहीं करने लगेगा तब तक मैं निश्चित कैसे बनूँगा? इसलिये, तू 'ज्ञानसार' का पुन:-पुनः परिशीलन करता रहे! 'ज्ञानसार' में तुझे हर प्रश्न का उत्तर मिलेगा! हर समस्या का समाधान मिलेगा। तेरा मन अपूर्व आनन्द की अनुभूति करेगा | शुरू करेगा न 'ज्ञानसार' का अध्ययन-परिशीलन? एक-एक श्लोक पर... एक-एक शब्द पर चिंतन करना! __ तूने अपने मित्र के विषय में चिंता व्यक्त की, स्वाभाविक है। मित्र के प्रति स्नेह होना सहज है। स्नेह से प्रेरित होकर तूने उसको समझाने का प्रयत्न किया, करना ही चाहिए | परंतु, निष्फलता मिलने पर विषाद नहीं करना चाहिए। अभी-अभी वह अपनी पुरानी भूल को दोहरा रहा है... कि जिस भूल ने उसको भूतकाल में कटु अनुभव कराये हैं, इसका अर्थ तो यह होता है कि उसको पहले भी अपनी भूल महसूस नहीं हुई होगी। अथवा, उसके मन की दुर्बलता होनी चाहिए कि उस गलत काम को वह छोड़ नहीं सकता!
होता है संसार में ऐसा! समझदार लोग भी पुनः-पुनः एक ही भूल करते
For Private And Personal Use Only