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जिंदगी इम्तिहान लेती है
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रहते हैं ! बार-बार कटु परिणाम भोगते रहते हैं... समझाने पर भी नहीं समझते! ऐसे जीवों की नियति ही वैसी होती है। उसके प्रति तू रोष मत करना, उसका तिरस्कार भी मत करना...। हालांकि उसके प्रति तेरा प्रेम है, इसलिये तू दुःखी तो होगा ही ! प्रेम दुःखी करेगा ही! तू उसके भविष्य को अंधकारमय देखता है, दुःखपूर्ण देखता है, इसलिये तुझे दुःख होगा | जिसके प्रति प्रेम होता है, उसको मनुष्य दुःखी नहीं देख सकता । प्रेमी के दुःख दूर करने की ही इच्छा बनी रहती है।
तू अपने उस मित्र के व्यक्तित्व की प्रशंसा लिखता है, होगा वैसा व्यक्तित्व! रूपवान होना, कलाकार होना, कवि होना, मोहक होना... एक व्यक्ति में ये सारी बातें इकट्ठी होती हैं, तब उसका व्यक्तित्व प्रभावशाली बनता है, परंतु यह व्यक्तित्व बाहरी होता है ! भीतर का व्यक्तित्व दूसरा भी हो सकता है ! तूने उसके आभ्यन्तर-आन्तरिक व्यक्तित्व को परखा है ? रूपवान व्यक्ति गुणवान ही हो, ऐसा नियम नहीं है। बाहरी कलाओं में निपुण व्यक्ति जीवनकला में निपुण न भी हो ! प्रकृति के काव्यों की रचना करने वाला अध्यात्म के गीतों से अनभिज्ञ हो सकता है। बाहरी मोहकता से आकृष्ट व्यक्ति, निकट आने पर निराश भी हो सकता है !
अपने बाह्य व्यक्तित्व के प्रति वह सचेष्ट होगा! उस व्यक्तित्व पर उसे विश्वास होगा! उस व्यक्तित्व के सहारे निर्भय होगा ! और इस विश्वास ने उसको गलत रास्ते पर चलने में 'हिम्मत' बंधाई है ! 'मैं किसी से डरता नहीं हूँ... मुझे किसी की परवाह नहीं है...' ऐसा बोलता भी होगा ! व्यक्तित्व का अभिमान उस पर ‘हावी' हो गया है। इस समय तू उसे नहीं समझा सकेगा !
एक बार तो उसका वह अभिमान बर्फ की तरह पानी-पानी हो गया था न? बर्फ कितने दिन तक बर्फ बना रहेगा? एक दिन पानी होगा ही! कोई दुर्घटना ही उसको समझा सकेगी! अथवा कोई 'सद्गुरु' की बात जब उसकी आत्मा को स्पर्श कर देगी... तब वह होश में आयेगा । 'वेट एंड सी' !
ही
तू उसके विषय में सोच ही मत ! उससे मिलना भी छोड़ दे ! थोड़े दिन में तू स्वस्थ बनेगा। वर्तमानकालीन उसकी प्रवृत्तियाँ जब तेरे मन में उद्वेग ही पैदा करती है, संताप पैदा करती है... तब उससे दूर रहना ही उचित होगा । संभव है कि उसके प्रति तेरा आन्तरिक राग, उससे मिलने के लिये, उससे बातें करने के लिये तुझे प्रेरित करेगा ! परंतु तुझे अपने राग पर संयम रखना होगा!
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