________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
जिंदगी इम्तिहान लेती है
१९४
• मानव मन कितना गहन है! वैचारिक आग्रह मनुष्य को विषाद के रंगों से
रंग डालता है।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
* कभी-कभी बुद्धिशाली कहलाने वाले लोग भी ऐसे वैचारिक दुराग्रहों के कारण असंख्य परेशानियों में अपने आपको उलझा देते हैं।
उसी की उपेक्षा होती है जो स्वयं औरों की उपेक्षा करता है।
* जो खुद औरों का खयाल नहीं करता... वह कैसे अपेक्षा रख सकता है कि औरों की तरफ से उसे उपेक्षा नहीं मिलनी चाहिए ।
प्रिय मुमुक्षु,
* मन को परसापेक्षता के विषवर्तुल में से बाहर निकाल देना चाहिए। मन बदला कि पूरी दुनिया बदल जायेगी !
पत्र : ४६
धर्मलाभ,
तेरा पत्र मिला। आनन्द हुआ | आनन्द है, मात्र प्रत्युत्तर पाने का ! पत्र का विषय तो विषाद करे वैसा है...! मानव मन की विचित्र गतिविधियाँ हैं ! वैचारिक आग्रह मनुष्य को अशान्त बना देते हैं ! बुद्धिमान कहलाने वाले लोग ही ज्यादातर ऐसे दुराग्रहों में फँसे हुए दिखाई देते हैं।
'घर में मेरी उपेक्षा होती रही है!' यह तो है तेरी फरियाद ! जो लोग तेरी उपेक्षा कर रहे हैं उनसे तेरी अपेक्षायें कितनी हैं ? तू यह चाहता है कि अपनी सारी अपेक्षायें पूर्ण होनी चाहिये - सही है ना? जरा आसपास जाँच करके देखना कि किस व्यक्ति की सारी अपेक्षायें पूर्ण होती हैं ! कब तक पूर्ण होती रही हैं ?
मेरा ऐसा अनुमान है कि तूने किसी ऐसे व्यक्ति को देखा है कि जिसकी अपेक्षायें विशेषरूप से पूर्ण होती हों! उसके घर में उसकी उपेक्षा नहीं होती हो! परिवार के लोग उसका महत्त्व समझते हों और यह देखकर उससे तूने तुलना की हो !
'उसके घर में उसकी कितनी महत्ता रहती है! कोई उसकी उपेक्षा नहीं करता है... और मेरे घर में कोई मेरी महत्ता ही नहीं समझता है... हर बात में मेरी उपेक्षा होती है...!'
For Private And Personal Use Only