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जिंदगी इम्तिहान लेती है
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अवास्तविक को वास्तविक मान लिया ? और यदि वास्तविक मान भी लिया है तो वास्तविक कर दिखाओ। दे दो अपने 'अहं' का बलिदान! दे दो अपने स्वार्थ का तर्पण! है तैयारी ? जब इतने वर्षों से स्नेह-सम्बन्ध बनाये रखा है तो जीवनपर्यंत निभा लो । यदि सच्चा प्रेम होता है तो कभी भी विच्छेद होता नहीं । सच्चा प्रेम घटता तो नहीं, प्रवर्धमान होता रहता है।
तुम दोनों साधक हो! सांसारिक कोई स्वार्थ तुम दोनों को नहीं है । तुम अपना आन्तरनिरीक्षण करो । करोगे? यदि पारस्परिक रोष कम नहीं हुआ होगा तो आन्तरनिरीक्षण संभव नहीं है । रोष की उपस्थिति में आत्मनिरीक्षण संभव ही नहीं! रोष आत्मनिरीक्षण नहीं करने देता, वह तो परदोषदर्शन ही करवाता है। आत्मनिरीक्षण में तुम दोनों को अपने दोष दिखाई देंगे। तू कहेगा ‘मेरी गलती है', वह कहेगा 'नहीं, मेरा दोष है।' और समाधान हो जायेगा।
लड़ाई करवाता है आग्रह ! दुराग्रह ! साधक का मन दुराग्रहों से मुक्त होना चाहिये। आग्रहों से जकड़ा हुआ मन क्लेश और अशांति से भर जाता है । मन को निराग्रही बना दे । आत्मस्नेह और आत्ममैत्री निराग्रही मन में स्थायी बनती
है।
तू
भूल... गलती... दोष... होना छद्मस्थ जीव के जीवन में स्वाभाविक है । क्यों भूल जाता है कि हम सब छद्मस्थ हैं । संसारी हैं । कर्मों के बंधनों से बद्ध हैं। फिर भी, दूसरे जीवात्माओं से हम कुछ तो ऊपर उठे हुए हैं न? कुछ साधनामार्ग पाया है, कुछ तत्त्वज्ञान पाया है, कुछ सत्समागम पाया है। फिर, दूसरे अपने जैसे ही छद्मस्थ जीवों से ऐसी अपेक्षा क्यों रखनी चाहिए कि ‘उसको ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए !' गलतियाँ होती रहेगी और क्षमादान देते रहना है! दूसरों की गलतियों की स्मृति भी शेष नहीं रखनी है।
प्रिय मुमुक्षु! अब चर्मदृष्टि से देखना नहीं है, सोचना नहीं है और व्यवहार करना नहीं है। अब तो ज्ञानदृष्टि के आलोक में देखना और सोचना है। व्यवहार भी ज्ञानदृष्टि-मूलक बनाना है। हृदय में विशुद्ध प्रेम, मुख पर प्रसन्नता और व्यवहार में उदारता से जीवन को रसपूर्ण बनाना है। किसी से कुछ पाना नहीं है, सभी को कुछ न कुछ सुन्दर और शाश्वत् देना है। दूसरों से कोई अपेक्षा नहीं और दूसरों के प्रति अपने कर्तव्यों का निष्ठा से पालन करना है। मैं तुम्हारा ऐसा जीवन देखना चाहता हूँ ।
'किसकी गलती है-' इसका न्याय नहीं करना है। मेरे पास ऐसा न्याय करवाने की इच्छा मत करना । ऐसा न्याय करने में प्रायः अन्याय ही हो जाता
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