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जिंदगी इम्तिहान लेती है
१९० ® संसार का कोई भी संबंध, फिर वह कितना भी गहरा हो, निकट का हो,
सदा-सर्वदा का नहीं हो सकता! उसमें दरार पड़ने की! उसमें दुराव आने
का! उसमें उतार-चढ़ाव आने के! ® संबंधों की सार्थकता है 'स्व' को भुला देने में! 'अहं' को जला देने में! 'मम'
को मिटा देने में! ® अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा से करना है... औरों की तरफ से कुछ
भी अपेक्षा रखे बगैर! ® औरों को अपराधी सिद्ध करके स्वयं को निरपराधी करार देना, बहुत बुरी
बात है। ® दुनिया की निगाहों में शायद निरपराधी सिद्ध हो भी गये तो क्या? परमात्मा
की निगाहों का खयाल किया है?
पत्र : ४५
प्रिय मुमुक्षु!
धर्मलाभ, तेरा पत्र मिला! कच्छ के 'पंचतीर्थ' के नाम से प्रसिद्ध भव्य जिनमंदिरों की स्पर्शना हुई। तीर्थाधिपति परमात्मा के दर्शन-वंदन-स्तवन से आत्मा प्रफुल्लित हुई। तेरा, नलिया, जखौ, कोठारा और सुथरी-पंचतीर्थ के ये पाँच गाँव हैं। मंदिरों की भव्यता, जिनप्रतिमाओं की मनोज्ञता और तीर्थों की व्यवस्था... सब कुछ आनन्द से भर दे वैसा है। ___ मांडवी पहुँच गये हैं, 'चैत्री-ओली' यहीं पर होगी, इसलिए चैत्री पूनम तक यहाँ स्थिरता होगी। मांडवी कच्छ का छोटा परन्तु अच्छा नगर है । ऐतिहासिक शहर है! प्रजा में भावुकता और स्नेहार्द्रता दिखाई देती है।
तेरा पत्र तीन बार पढ़ा | पारस्परिक सम्बन्धों को लेकर तू खूब उद्विग्न है। उद्विग्न होना स्वाभाविक है। तुने तुम्हारे दोनों के सम्बन्ध को अभेद्य और अविच्छेद्य मान लिया था न...। भैया मेरे, संसार का कोई भी सम्बन्ध अभेद्य और अच्छेद्य हो सकता है? कोई भी ज्ञानी पुरुष ने संसार के किसी भी सम्बन्ध को अभेद्य... अच्छेद्य बताया है क्या? तो फिर तुम दोनों ने क्यों
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