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जिंदगी इम्तिहान लेती है
१८९ में भी अत्यन्त उपयोगी है। मुनिजीवन वास्तव में अन्तर्मुख जीवन ही है। अन्तर्मुख जीवन जीनेवाला मुनि ही वास्तविक आन्तर आनन्द की अनुभूति कर सकता है। मुनि भी यदि बहिर्मुख चिन्तन-दर्शन में डूब जाता है तो उसका आध्यात्मिक पतन होता है। ___ मैं समझता हूँ कि तु शान्त और स्वस्थ मन से इन बातों पर विचार करेगा। सोचने की और देखने की दृष्टि को बदलने का प्रयत्न करेगा। तु अनुभव करेगा कि अपनी आन्तरिक प्रसन्नता बढ़ गई है! तेरे आसपास का वातावरण बदल गया है!
तेरी आन्तर-बाह्य कुशलता चाहता हूँ। ४-२-८० विथोन (कच्छ)
- प्रियदर्शन
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