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जिंदगी इम्तिहान लेती है
१८० शुभेच्छाओं के प्रति शंकाशील मत बन | जीवन में रसानुभूति तभी होगी जब तू दूसरों के जीवन में रसवृत्ति पैदा करेगा। तू यह सत्य मत भूलना कि बुद्धि से - तर्क से भावना-भावुकता महान् है। जिनके पास ज्यादा तर्क-वितर्क करने की क्षमता नही है ऐसे भावुक जीव जिस प्रसन्नता से जीवन जी रहे हैं, उतनी प्रसन्नता से बुद्धिवादी लोग नहीं जी रहे हैं।
बुद्धि का सदुपयोग करना है? तो एक मार्ग बताता हूँ। तू भारतीय दर्शनों का अध्ययन कर! न्यायदर्शन का अध्ययन करके सर्वप्रथम जैनदर्शन के नयप्रमाणगर्भित ग्रन्थों का अध्ययन कर।
जब तू जैनतर्कभाषा, स्याद्वादमंजरी, रत्नाकर-अवतारिका, स्याद्वादरत्नाकर, अनेकान्तजयपताका और संमतितर्क जैसे ग्रन्थों का अध्ययन करेगा, तेरी बुद्धि परिमार्जित और कुशाग्र बन जायेगी। इतना अध्ययन करने के बाद तू सर्वदर्शन संग्रह, वेदान्तपरिभाषा, न्यायबिन्दु, सांख्य-तत्त्वकौमुदी, शांकरभाष्य जैसे जैनेतर ग्रन्थों का अध्ययन-परिशीलन करना । __ तर्क और प्रतितर्क कैसे किये जाते हैं, यह भी सीखना आवश्यक है। ऐसे दार्शनिक ग्रन्थों के अध्ययन से तेरे ज्ञान में अभिवृत्ति होगी और बुद्धि में स्थिरता आयेगी। दुनिया की फालतू बातों में मन जायेगा नहीं। तत्त्वचिंतन में बुद्धि का सदुपयोग होगा। ___ महानुभाव! कितनी छोटी सी यह जिंदगी है! कितनी अल्प अपनी बुद्धि
और शक्ति है! जीवन में कितनी अनिश्चितता है? फिर क्यों निष्प्रयोजन विवादों में उलझना? क्यों असंतोष और परिताप की आग में सुलगना? तू बुद्धिमान है, अपनी बुद्धि का तत्त्वचिंतन में विनियोग कर देना आनन्दप्राप्ति का श्रेष्ठ उपाय है। तत्त्वचिंतन में एक बार रसानुभूति हो गई, बस! फिर काम बन गया समझ!
तेरी-मेरी आत्मीयता प्रगाढ़ होने से इस पत्र में कुछ तुझे अप्रिय लगे वैसी बातें लिख दी गई है...। आत्मीयजन को ही ऐसा लिखा जा सकता है। मेरी यह अभिलाषा है कि तू घर में, स्नेही-स्वजनों में, और मित्रों में बुद्धिवाद को छोड़ दे। हर प्रश्न का जवाब देने की आवश्यकता नहीं है। कभी-कभी मौन भी श्रेयस्कर बनता है। कभी मुस्कराकर ही जवाब दे दिया जा सकता है। कभी चुप्पी साधे, दूसरों की बातें सुन लिया कर! दूसरों को कभी-कभी विजयी बनने
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