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जिंदगी इम्तिहान लेती है
१६७ ® पानी की बाढ़ से भी ज्यादा खतरनाक बाढ़ है, समय की! सब कुछ इस
कदर खींच ले जाता है समय... कि पीछे नामोनिशा भी नहीं बचता! ® सब कुछ बह जायेगा इक दिन! यह महल ढह जायेगा इक दिन! ॐ यह समझकर आदमी यदि जिये तो उसे सुखों में आसक्ति नहीं होगी! जब
भी जरूरत होगी... वह अपने सुखों को बिखेर देगा! बाँट देगा! ® सुखों को बांटने का, बिखेरने का भी एक अद्भुत आनंद है! अपनी खुशी
के फूलों की खुशबू को लुटाने का मजा भी अनूठा होता है। 8 सुखों को महसूस करना एक चीज़ है... जबकि उसमें आसक्त होकर जीना
अलग चीज़ है।
पत्र : ३९
प्रिय मुमुक्षु,
धर्मलाभ, संवेदनाओं से संसिक्त तेरा पत्र मिला, मन प्रसन्न हुआ। तेरी संवेदनशीलता ने मेरे हृदय को प्रभावित किया । चूँकि मोरबी का जलप्रलय अभी भी विस्मृत नहीं हुआ है। जो हजारों मानव एवं पशु जलप्रवाह में बह गये... मर गये... उनके विषय में 'मृत्यु' ही चिन्तन बन गया है। जो बच गये हैं थोड़े-बहुत मनुष्य... वे बेघर, निराधार और वेदनाग्रस्त हैं। उन लोगों का सुख बह गया... इसलिए वे दुःखी, अशांत और वेदनाग्रस्त हैं।
वे नहीं चाहते थे कि उनके सुख जलप्रवाह में बह जाये... फिर भी बह गये... इसलिए वे दुःखी हैं, अशांत हैं। परंतु मानव नहीं जानता है कि जलप्रवाह से भी ज्यादा... बहुत ज्यादा भयानक है, कालप्रवाह! कालप्रवाह में सब कुछ बह रहा है। हम भी कालप्रवाह में बह रहे हैं। कालप्रवाह में देवदेवेन्द्र बह गये हैं... राजा-महाराजा बह गये हैं... बड़े-बड़े नगर बह गये हैं... सर्वभक्षी है, यह कालप्रवाह | जागृत मनुष्य को यह समझकर जीना चाहिए कि 'मैं और मेरे सुख कालप्रवाह में बह जानेवाले हैं।' यदि इस समझदारी के साथ मनुष्य जिये तो उसको अपने आप पर ममता नहीं रहेगी, अपने सुखों पर ममता नहीं रहेगी। वह अपने आपका विसर्जन चाहेगा... वह स्वयं अपने सुखों को बिखेर देगा। सुखों का त्याग कर देगा।
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