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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६५ जिंदगी इम्तिहान लेती है __ जलप्रलय के समाचार विश्व में फैल गये हैं। हजारों निराधार बने स्त्रीपुरुष राजकोट चले गये हैं, हजारों अनाथ लोग अपने स्नेही-स्वजनों के गाँव चले गये हैं... हजारों स्त्री-पुरुष मौत की गोद में समा गये हैं। ८० हजार की आबादीवाला मोरबी शहर आज विरान हो गया है। हालांकि पानी की बाढ़ के बाद अब सहायता की बाढ़ आ गई है। ध्वस्त मोरबी को स्वस्थ बनाने के लिये सरकारी तंत्र के अलावा अनेक सेवाभावी संस्थायें और हजारों स्वयंसेवक मोरबी में कार्यरत हैं। यहाँ से भी हजारों रूपये की सहायता पहुँचाई गई है। समग्र देश में से करोड़ों रूपये की सहायता पहुँचेगी... परन्तु जिन्होंने स्वजनों को खो दिया है... स्नेही और मित्रों को गँवा दिया है, उनकी क्षतिपूर्ति कौन करेगा? टूटे हुए मकान नये बनवा दिये जायेंगे... लोगों को खाद्य सामग्री और दूसरी जीवनोपयोगी सामग्री दी जायेगी... परन्तु जो स्नेही-स्वजन मौत की गोद में समा गये, उनको कौन वापस लौटायेगा? ___ जीवन की क्षणभंगुरता का इससे बढ़कर कौन-सा उदाहरण चाहिए? प्रियजनों के संयोग-वियोग की करुण कथा, इससे बढ़कर कौन-सी चाहिए? वैभव और संपत्ति की अनित्यता को समझने के लिए इससे बढ़कर कौन-सी घटना चाहिए? वैषयिक सुखों की आसक्ति को मिटाने के लिए इससे बढ़कर कौन-सा उपदेश चाहिए? यौवन और जीवन की क्षणिकता आत्मसात् करने के लिए इससे बढ़कर कौन-से करुण दृश्य चाहिए? गलियों में... राजमार्गों पर पड़ी हुई अनेक युवकों की... युवतियों की चेतनाहीन देहों को देखकर भी वैराग्य न हो तो वैराग्य के दूसरे कौन-से कारण चाहिए? __ अल्पकालीन जीवन के तुच्छ सुख-दुःखों के लिए निरन्तर झगड़ने वाले लोग क्या ऐसी प्रत्यक्ष दुर्घटनाओं से कोई बोध ग्रहण करेंगे? हर घटना को देखने की एक दिव्यदृष्टि चाहिए। हर घटना पर सोचने की ज्ञानदृष्टि चाहिए | जब जिन्दगी इतनी क्षणिक है, अनित्य है... तो फिर उस जिन्दगी के सुख-दुःखों के लिए झगड़ना क्या? किसी सुख को पाने की तत्परता क्यों? किसी दुःख से छूटने की तीवेच्छा क्यों? प्रिय मुमुक्षु! तन-मन के सारे द्वन्द्व सुख-दुःख के आग्रहों में से उत्पन्न होते हैं और आग्रह होता है सुखों के राग से, दुःखों के द्वेष से । क्षणिक सुखों के प्रति राग? क्षणिक दुःखों के प्रति द्वेष? क्यों? ये राग-द्वेष करते रहेंगे और जीवन ही समाप्त हो जायेगा तो? राग-द्वेष करते रहे और यौवन ही चला गया तो? किसी अप्राप्त सुखों की इच्छा करने जैसी नहीं है, प्राप्त सुखों की ममता For Private And Personal Use Only
SR No.009633
Book TitleJindgi Imtihan Leti Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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