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जिंदगी इम्तिहान लेती है क्या कर्तव्य है?' इतना ही सोचा । 'पिताजी का क्या कर्तव्य है - पिताजी को क्या करना चाहिए,' यह नहीं सोचा | उन्होंने अपने सुखों का त्याग कर दिया। __ 'दुनिया स्वार्थी है,' ऐसा मत सोचो, 'दुनिया के सब जीव मेरे मित्र हैं, ऐसा सोचो। मित्रता की शर्त है - परहित का विचार! सब जीवों के हित का, कल्याण का विचार ही तो मित्रता है। 'विश्व का कल्याण हो' विश्व के जीवमात्र का कल्याण हो - इस पवित्रतम प्रार्थना से अपने प्राणों को प्लावित करो।
शांति से, स्वस्थ चित्त से पत्र पढ़ना, दो-तीन बार पढ़ना, मन में किसी भी तरह की जिज्ञासा जागृत हो, मुझे अवश्य लिखना, जय वीतराग! भीवंडी, १ अक्टूबर १९७५
- प्रियदर्शन
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