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जिंदगी इम्तिहान लेती है
जिसको उपकारी समझना है, जो वास्तव में महान उपकारी हैं - उसको 'स्वार्थी' मानना, कितना बड़ा पाप है? उपकारी के उपकारों को भूल जानेवाला मनुष्य, मोक्षमार्ग की आराधना कर ही नहीं सकता, धर्मक्षेत्र में उसको प्रवेश ही नहीं मिलता, धर्म करने का अधिकार ही नहीं है उसको। __ एक बात बतायेगा मुझे? 'माता-पिता वगैरह स्वार्थी हैं - यह बात तूने कहाँ सुनी? कहाँ पढ़ी? अपने ही स्वार्थों को सिद्ध करने की इच्छावालों ने, जब उनकी स्वार्थसिद्धि हुई नहीं, स्वार्थसिद्धि के मार्ग में उन्होंने माता-पिता या किसी भी स्वजन को अवरोध-रूप में देखा, वे चिल्ला उठे - 'ये सब स्वार्थी हैं! ये सब मतलबी हैं!' हालांकि चिल्लानेवाले स्वयं स्वार्थी हैं, स्वयं मतलबी हैं, परन्तु उसका स्वार्थ माता ने, पिता ने, भाई ने, बहिन ने, पत्नी ने, पुत्र ने, मित्र ने... किसी ने पूर्ण नहीं किया और वह निराश हो गया । उन सब स्नेही के प्रति उसके मन में द्वेष पैदा हो गया, और वह चिल्लाया - 'ये सब स्वार्थी हैं!' ।
सच बात कह दूँ? मनुष्य की स्वार्थ दृष्टि ही दूसरों को स्वार्थी देखती है! तेरा कोई स्वार्थ है, तेरे मन में कोई सुख पाने का स्वार्थ छिपा हुआ है - वह स्वार्थ - वह वासना, तेरे माता-पिता वगैरह पूर्ण नहीं कर रहे हैं - इसलिए वे तेरी दृष्टि में 'स्वार्थी' लग रहे हैं, उनके प्रति तेरे मन में घृणा हो गई है और इसलिए उनके साथ अविनय-अविवेक और संघर्ष होता रहता है!
दृष्टि बदल दे। ऐसी दृष्टि किस काम की जो हमें चित प्रसन्नता नहीं देती, जो हमें मैत्रीभाव के पवित्र जल में स्नान नहीं करने देती, जो हमें वास्तविक मोक्षमार्ग नहीं देखने देती? दृष्टि बदल जायेगी फिर माता स्वार्थी नहीं दिखेगी वरन् उपकारी दिखेगी! माता गुणहीन नहीं दिखेगी, बल्कि गुणभंडार दिखेगी। तू अपने सुखों के लिए माता का तिरस्कार कर के उसका त्याग नहीं करेगा, माता के सुख के लिए तू अपने सुखों का त्याग करेगा! वह सुखों का त्याग तेरा परमसुख बन जाएगा। ___ मैं समझता हूँ - कई पारिवारिक समस्याएँ तेरे सामने हैं, तेरी उन सब समस्याओं का तो नहीं, परन्तु मेरे से हो सके उतनी ज़्यादा से ज़्यादा समस्याओं का समाधान करने का मैं प्रयत्न करूँगा। पर यदि तू दृष्टिजीवनदृष्टि बदल देगा, तो तेरी सब समस्याओं का समाधान तू स्वयं ही कर लेगा। तुझे करना भी नहीं पड़ेगा, स्वतः समाधान हो जाएगा.. दृष्टि बदलने पर समस्या रहती ही नहीं!
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