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जिंदगी इम्तिहान लेती है वनवास के और निष्कासन के दुःखों की फरियाद की थी। किसी के सामने नहीं! सीता के सतीत्व का यही तो रहस्य था।
दुःखों के साथ समझौता होने के बाद फरियाद नहीं होगी। जीवन जीने में आनंद आएगा। दुनिया तुझे दु:खी मानेगी, या देखेगी, तू स्वयं अपने आपको सुखी मानेगा! तेरे मन में किसी भी जीवात्मा के प्रति दुर्भाव नहीं उभरेगा, रोष प्रज्वलित नहीं होगा। यदि फरियाद करनी ही है तो दुःख की फरियाद नहीं करना, पापों की फरियाद करना, तेरे अपने पापों की फरियाद करना। ___ कभी की है पापों की फरियाद? हाँ, दूसरों के पापों की फरियाद और अपने दु:खों की फरियाद? मनुष्य की आदत बन गई है। इस आदत को मिटाना है, इस मानव जीवन में। अपने पापों की फरियाद करो, दूसरों के दुःखों की फरियाद करो।
लींबडी से विहार कर दिया है। यह पत्र तेरे पास पहुँचेगा, तब तो हम इडर में होंगे। इडर तो तेरा देखा हुआ है। मेरे साथ ही तो था तू... जब हम इडर के पहाड़ों में घूमे थे। पहाड़ के ऊपर कितना भव्य और सुन्दर जिनालय है। कैसी-कैसी गुफाएँ हैं! ध्यानसाधना और योगसाधना के लिए ऐसे स्थान बहुत ही उपयोगी बनते हैं। साधन तो बहुत है... परंतु साधक कहाँ हैं! क्या तू ऐसी साधना पसन्द करेगा। आत्मसाधक बनना है या धर्मप्रचारक बनना है? __ पदयात्रा आनंदप्रद हो रही है। सभी मुनिवर प्रसन्नता से पुलकित हैं, अपने-अपने कर्तव्यों में सजग हैं। तेरी कुशलता चाहता हूँ।
शारद (सौराष्ट्र)
२१-११-७८
- प्रियदर्शन
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